समानता, स्वतंत्रता और स्वछंदता मे अंतर समझना अति आवश्यक

From - डा. शिव शरण "अमल"

      कुदरत ने यह श्रष्टि  नर और मादा से निर्मित की है, दोनो के अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे के पूरक और बराबर हैं, नरनारी दोनो एक दूसरे के बिना अधूरे हैं। सबसे प्राचीन और विकसित सनातन संस्कृति तो इससे भी एक कदम आगे बढ़कर "यत्र नार्यास्तु पूज्यंते , रमंते तत्र देवता"के सिद्धांत का प्रतिपादन करती है। अतीत मे एक से बढ़कर एक विदुषी, राजनीतिक कुशलता की धनी, वीरांगनाओं, भक्ति से ओतप्रोत नारियों के गौरव मयी इतिहास की कहानियां दिखाई पड़ती है।

(डा. शिव शरण "अमल")
      कालांतर मे धीरे-धीरे  कट्टरपंथी सोच विकसित हुई जिस ने महिलाओं को दोयम दर्जे मे रखा तथा बहु विवाह एवम बच्चे पैदा करने की मशीन के रूप मे इस्तेमाल किया , कमोवेश यह स्थित आज भी कट्टर पंथी सोच मे विद्यमान है , वास्तव मे इसमें ही सुधार अति आवश्यक है। बाद में पाश्चात्य संस्कृति ने स्वतंत्रता की परिभाषा ही बदल दी और नारी को स्वच्छंद रूप से अंग प्रदर्शन करवाकर विज्ञापन के रूप मे प्रस्तुत किया । वास्तव मे ये दोनो बाते उचित नहीं है, न तो कट्टर पंथी मान्यता को सही ठहराया जा सकता और न ही पाश्चात्य पद्धति को ही  सही ठहराया जा सकता। सनातन संस्कृति की मान्यता ही नारी को  समानता और स्वतंत्रता के साथ उसका गौरव प्रदान करेगी।


     आज के संदर्भ मे पाश्चात्य रहन_सहन ने किस तरह से स्वतंत्रता को स्वछंदता  मे बदल दिया है इसे लिव इन रिलेशन शिप, भागकर विवाह करना, विवाहेत्तर संबंधों को कानूनी मान्यता देना , आदि के रूप में देखा जा सकता है, और इनके दुष्परिणामों को बखूबी अनुभव किया जा सकता है।

      समाज मे हर जगह महिलाओं को बराबरी का दर्जा मिलना ही चाहिए, और यह मिल भी रहा है । घर की चार दिवारी और कट्टरपंथी सोच के अंदर अगर कुछ अपवादों को छोड़ दे तो आज कानून और समाज ने हर जगह महिलाओं को पुरुषो से ज्यादा अधिकार दे रखे हैं, लेकिन इनका सदुपयोग तभी हो सकता है जब हम समानता, स्वतंत्रता और स्वछंदता मे अंतर करना सीख जाएं।

     यह बात सच है कि हजारों बहुएं दहेज और घरेलू हिंसा की शिकार हुई हैं, हजारों लड़कियां उम्र दराज होकर अविवाहित रही हैं , परंतु यह भी उतना ही सच है कि हजारों निर्दोष वृद्ध सास, ससुर तथा पति के परिवारक के  नजदीकी सदस्य, रिश्तेदार यहां तक कि नजदीकी इष्ट मित्र भी झूठे दहेज और घरेलू हिंसा के प्रकरणों  मे सलाखों के पीछे गए हैं ।

      जहां आए दिन महिला प्रताड़ना के प्रकरण दिखाईसुनाई पड़ते हैं वहीं "मीटू" और "हनी-ट्रैप""के मावले भी बढ़ते जा रहे हैं. वास्तव मे दोनो पक्षों को अपने गुण, कर्म, स्वभाव मे, तथा अपने चिंतन,चरित्र मे निष्पक्षता से सुधार की जरूरत है। दोनो पक्ष एकदूसरे को अपना पूरक समझें, एकदूसरे की भावनाओं को महसूस करें तभी समाज मे  सुख-शांति कायम रह सकती है।