खामोशी हो गई

Poem from - NARENDRA SINGH "Babal" 


बहुत खामोशी हो गई मुद्दत से,

चलो चिड़ियों की तरह चहका जाए|

कुछ खेल -खेल में कागज़ की नाव तो 

मिट्टी का घर बनाया जाए ||

(Narendra Singh "Babal")










यह मासूम चुप है कब से ही

क्यों न इसे हँसाया जाए  |

कुछ खेल-खेल में 

छक-पक छक-पक करती 

इक-दूजे से रेल बनाया जाए ||

देखो !हवा चली मुताबिक़ अपने ,

चलो पतंग उड़ाया जाए |

चुप्पी-चुप्पी यूँ ठीक नहीं बबल ,

चलो ,क़िस्सा -कहानी कुछ

सुनाया जाए ||

बहुत खामोशी हो गई मुद्दत से ,

चलो ,चिड़ियों की तरह चहका जाए ||