शाकाहार - समग्र उपचार

From - डा. शिव शरण श्रीवास्तव "अमल"

कितने पुण्य उदय होने पर,

मानव जीवन मिलता है ।

जानबूझकर फिर क्यो वह,

इतनी उदण्डता करता है ।।

नही किसी की सुनता है,

और नही इसी की गुनता है।

ठोकर खाता,पछतात है,

फिर भी नही सुधरता है ।।

तन है जर्जर,मन भी दूषित,

भाव सभी कुंठित हो जाते ।

चीत्कार कर रही आत्मा,

फिर भी लत से बाज न आते ।।











जिन जीवो की रक्षा है,

भार मनुज के कंधे पर ।

उन्हें काट कर बेच रहा है,

उतर घिनौने धंधे पर ।।

ये ऋषि मुनियों की संतानों,

क्या हुआ तुम्हे क्या करते हो ।

ऐ जीव तुम्हारे सहभागी,

इनका ही भक्षण करते हो ।।

जितने भी जननायक थे,

लगभग सब शाकाहारी थे ।

गांधी,तिलक,कबीर,गोखले,

अहिंसा के ब्रत धारी थे ।।

वर्षो ठहरे ्राम,लक्ष्मण,

वनवासीय बसेरों में ।

अमृत रस सा मिला जायका,

था शबरी के बेरो में ।।

माखन मिश्री खाकर भी जो,

दानव दल संहारी थेे ।

गीता ज्ञान सिखाने वाले,,

गिरधर शाकाहारी थे ।।

किये अलौकिक कार्य अनेको,

पतितों के उद्धार के ।

रहे समर्थक महावीर, बुध,नानक,

शाकाहार के ।।

घास फूस खा  राणा ने,

था धूल चटाया अकबर को ।

पोरस ने अपना पौरुष ,

दिखलाया बीर सिकंदर को ।।

ईशा और मोहम्मद ने ,

भाई चारा सिखलाया है ।

जीव मात्र से प्रेम करो,

ऐसा संदेश सुनाया है ।।

फिर क्यों लेकर आड़ धर्म की,

कत्ले आम कराते हो।

मार काट कर जीवों को,

मिथ्या त्योहार मनाते हो ।।

बेजुवान पशु की लाचारी,

में क्यों जश्न मनाते हो ।

दिब्य अंश के वंशज हो,

क्यो कुल में दाग लगाते हो।।

मांस जीव का खाते हो,

फिर भी इंशान कहाते हो ।

मंदिर रूपी इस शरीर को,

कब्रिस्तान बनाते हो ।।

मटन चिकन खाने के पहले,

हाल जीव का लख लेते।

सुई चुभा अपने तन में,

अहसास दर्द का कर लेते।।

कितनी पीड़ा होती है जब,

एक कांटा चुभ जाता है।

सोचो उड़ प्राणी की हालत,

जिसका तन काटा जाता है।।

कितना दर्द,वेदना कितनी,

तड़पन कितनी भारी होगी ।

जीते जी जिसके शरीर पर ,

चलती खडग दुधारी होगी ।।

अंतर के पट खोल देख लो ,

पशु के आहत जीवन को ।

मानव की यह देह बानी है,

शुद्ध ,सात्विक ,भोजन को ।।

हम नृप दिलीप के वंशज हैं,

जो गाय चराने जाते थे ।

यदि सिंह सामने आ जाये ,

तो खुद आगे बढ़ जाते थे ।।

हम उस शिवि के बेटे,बेटी ,

जिनके सत्कृत्य बोलते थे ।

रक्षा में एक कबूतर की ,

खुद अपना मांस तोलते थे ।।

भानु प्रताप और कपटी मुनि,

की गाथा क्या सुनी नही ।

मांस पकाया धोखे से ,

फिर भी कितनी दुर्गती हुई ।।

मनु से लेकर मानव तक ,

सारा इतिहास बताता है ।

मांस खिलाने, खाने ,वाला,

नर पिशाच बन जाता है ।।

न्याय दृष्टि मे कुदरत की ,

सब प्राणी एक समान हैं ।

सबको जीने,रहने,खाने,

का अधिकार समान है ।।

सभी प्राणियों में ईश्वर है ,

यह मान्यता हमारी है ।

जियो और जीने दो सबको ,।

यह ही रीति हमारी है ।।

मदिरा, मांस, तामसी भोजन,

तन, मन दूषित करते हैं।

महामारियों के प्रभाव से,

बिना मौत ही मरते हैं।।

फल,कंद, मूल, खाने वाले,

हम ऋषियो की संतान है ।

,,आत्मवत _सर्वभूतेषु ,,ही

 अपनी, पहचान है ।।