हम सब भारत वासी हैं

Poem from - डॉ. शिव शरण श्रीवास्तव "अमल" 


हम सब भारत वासी हैं

अगड़े, पिछड़े, दलित नहीं हम,

ना ही आदिवासी हैं ।

कहो प्रेम से सब मिलकर के,

हम सब भारतवासी हैं ।।

समरसता की आड़ लिए जो,

जातिवाद फैलाते है ।

पुनः देश के टुकड़े करने ,

का षड्यंत्र रचाते है ।।

पहले ही हम बटवारे की ,

घोर त्रासदी झेल चुके ।

सत्ता के मद के मतवाले,

खेल घिनौना खेल चुके ।।

मत बहको,समझो मित्रो,

ये सारी चाल सियासी है ।

कहो प्रेम से सब मिलकर के,

हम सब भारतवासी है ।।











सम्प्रदाय का जहर पिलाकर,

कब तक गद्दी बची रहेगी ।

विघटन कारी कुटिल चाल यह,

कब तक आगे और चलेगी। ।

ग्रस्त,त्रस्त,आतंकित प्रतिभा,

कब तक यह अपमान सहेगी ।

कुंठित यौवन शक्ति भड़ककर,

गली गली भूचाल करेगी ।।

नफरत की यह आंधी अब,

अपनो के खून की प्यासी है।

कहो प्रेम से सब मिलकर के,

हम सब भारतवासी हैं ।।

जाति पंथ,का भेदभाव अब,

हमे मिटाना ही होगा ।

ऊँच नीच की इस खाई को,

हमे पाटना ही होगा ।।

मजहब के उन्मादों से अब,

मुल्क बचाना ही होगा ।

प्रतिभाओं की प्रतिभा को,

सम्मान दिलाना ही होगा।।

तुष्टिकरण का दावानल,

अपना ही वतन विनासी है।

कहो प्रेम से सब मिलकर के,

हम सब भारतवासी हैं ।।

जाति, पंथ का आरक्षण

आपस मे फूट कराता है।

निर्धन ज्यो का त्यों रहता है,

धनिक वर्ग मुस्काता है।।

इसलिए समय की मांग यही है,

इस पर पुनः बिचार करो।

जो असली हकदार उन्हे,

हक देने का उपचार करो ।।

अब तक की करतूतों से,

यह धरती बहुत उदासी है।

कहो प्रेम से सब मिलकर के हम सब भारतवासी हैं।।

वो भिन्न जाति वर्णो वालो,

मत उछलो बाहर जाने को।

ये हमे तोड़ना चाह रहे है,

अपना स्वार्थ भुनाने को।।

हम भारत से,भारत हमसे,

भारत ही अपना परिचय है।

हम भारत की धड़कन हैं,

भारत ही हमारा हृदय है ।।

यहीं हमारा येरुसलम है,

यह ही काबा काशी है ।

कहो प्रेम से सब मिलकर के,

हम सब भारतवासी हैं।।

सत्तर वर्षो का अनुभव ,

क्या नही समझ मे आया है।

खास_खास कुछ ही लीगो ने

इसका लाभ उठाया है ।

नब्बे प्रतिसत से ज्यादा,

जैसे थे वैसे अब भी है।

पहले भी थे वोट बैंक,

और वोट बैंक वे अब भी है।।

रोज कामना,रोज पकाना,

यह ही बारहमासी है।

कहो प्रेम से सब मिलकर के,

हम सब भारतवासी है ।।

भूख ,गरीबी,लाचारी के,

नही जाति _गत रिस्ते है।

बिना दवाई,तडप-तड़प के,

कितने मरते रहते है ।।

क्या अगड़े_क्या पिछड़े _निर्धन,

कितना  दंश झेलते हैं ।

कितनो के घर चूल्हा जलता,

कितनी फाके भरते हैं ।।

सोचो कितने लल्ला भूखे,

कितनी लल्ली प्यासी हैं ।

कहो प्रेम से सब मिलकर के,

हैम सब भारतवासी है ।।

केवल एक जाति है मानव,

राष्ट्रधर्म ही एक धर्म है ।

जियो और जीने दो सबको,

यही धर्म का मूलमंत्र है ।।

सिर्फ आर्थिक पिछड़ेपन का,

कुछ हदतक आरक्षण हो ।

कल्याणी, दिव्यांग, यतीमों,

के हित का संरक्षण हो।।

समझदार जनता अपनी,

खुशियाली की अभिलासी है ।

कहो प्रेम से सब मिलकर के,

हम सब भारतवासी है ।।