चित्र (चैत) मास में श्री चित्रगुप्त और माँ दुर्गा की पूजन और आराधना अति उत्तम

     बोकारो (झारखण्ड) : सत्य सनातन रक्षा सेना के राष्ट्रीय संयोजक और राष्ट्रीय सनातन वाहिनी के राष्ट्रीय महासचिव (धर्म प्रकोष्ठ) अजीत सिन्हा ने सभी सनातन के भाइयों व बहनों को सनातन नव वर्ष 2078 की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुये सनातन धर्म के कुछ बिंदुओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि चित्र मास जो कि अपभ्रंश के रूप में चैत मास जानी जाती है में पर ब्रह्म स्वरुप चित्रगुप्त और माँ दुर्गा सहित उनके नौ रूपों की पूजन और आराधना अति उत्तम है क्योंकि इसी चित्र मास से सनातनियों का नव वर्ष आरंभ होता है. माता का पूजन 13 अप्रैल से प्रथम तिथि की पूजा आरंभ हो चुकी है. यह दस दिनों तक चलेगी एवं प्रत्येक तिथि की पूजा का अपना महत्व है. 

(माता नव दुर्गा

     प्रथम पूजा माँ शैलपुत्री, द्वितीय माँ ब्रह्माचारिणी, तृतीय माँ चंद्रघंटा, चतुर्थ कुष्मांडा देवी, पंचम स्कंध माता, षष्ठी कात्यायनी, सप्तम कालरात्रि माँ, अष्ट्म महागौरी माँ और नवम् सिद्धिदात्री माँ का पूजन, माता दुर्गा के नौ रूपों के रूप में होता है. ये सभी आदि शक्ति माता जग कल्याणी और दुष्ट दमनकारी का प्रतीक हैं. इनका पूजन सर्वार्थ मनोरथ पूर्ण के साथ-साथ कष्टों से मुक्ति के मार्ग को प्रस्तत करते हैं. जो भी सनातनी अपनी सामर्थ्य और भाव के अनुरूप इनका पूजन और दुर्गा सप्तशती का पाठ या आराधना करते हैं, उनके जीवन जीने के मार्ग अवश्य ही सुलभ हो जाते हैं. इनकी पूजा किसी जानकार पंडित के सानिध्य में ही करनी चाहिए क्योंकि मन्त्रों का शुद्ध उच्चारण और पूजन विधि में त्रुटि नहीं होनी चाहिए। यदि गलती से हो भी गई तो क्षमा याचना और प्रार्थना से माँ क्षमा कर देती हैं. यह पूजा बहुत ही पवित्रता के साथ करनी चाहिए और सात्विक खान-पान का ही प्रयोग करना चाहिए। इसमें लहसून, प्याज के साथ-साथ निरामिष (Non-Vegetarian) सर्वथा वर्जित है. केवल तांत्रिक विधि से बलि प्रथा से पूजन करने वाले ही बलि के बाद ही निरामिष भोजन का प्रयोग करते हैं, हालांकि मैं बलि प्रथा का घोर विरोधी हूं. इसलिये सभी को वैदिक रूप से पूजन हेतु ही प्रेरित करता हूं. क्योंकि इस दुनिया में सभी को जीने का अधिकार है चाहे वे पशु-पक्षी ही क्यों न हों?

(श्री चित्रगुप्त भगवान
      चित्र मास की पूर्णिमा को श्री चित्रगुप्त का वार्षिक पूजन कायस्थों सहित सभी सनातनियों के लिए अति कल्याणकारी है। सनातन धर्म ट्रस्ट, गोरखपुर के अनुसार लोकशासक श्री चित्रगुप्त पर ब्रह्म स्वरुप तो है हीं और साथ में यमलोक में यमों के स्वामी भी हैं। चित्र मास शुक्लपक्ष की प्रतिपदा से यमनियम प्रारम्भ होता है. जो वैशाख की अमावस्या को समाप्त होता है। दक्षिण भारत के कांचीपुरम् में लोकशासक चित्रगुप्त का प्राचीन मंदिर है, वहां चित्र मास शुक्लपक्ष की पूर्णिमा को लोकशासक चित्रगुप्त का प्रकट उत्सव मनाया जाता है. 

     लोकशासक चित्रगुप्त की पूजा एक मास तक की जाती है। दक्षिण भारत में चित्रमास शुक्लपक्ष की पूर्णिमा से वैशाख अमावस्या तक केतु ग्रह की शांति करायी जाती है, क्योंकि लोकशासक चित्रगुप्त-केतु ग्रह के अधिदेवता हैं. शुद्ध भाषा में सनातन नव वर्ष का प्रारम्भ चित्रमास से होता है. इसी मास में लोकशासक चित्रगुप्त और माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजन, पाठ और आराधना अति लाभकारी है।