जनता पस्त, व्यापारी त्रस्त एवं पुलिस - प्रशासन मस्त

 News from - Ajeet Sinha (स्टेट ब्यूरो चीफ, झारखंड)

     राँची : कोरोना काल में लॉक डाउन की धज्जियां उड़ाते हुये व्यापारी वर्ग भय व चिंता के बीच स्थानीय थाना को चढावा चढाते हुये अपनी-अपनी व्यावसायिक गतिविधियों में लगे हुए हैं. जिन दुकानों को खोलने की परमिशन नहीं है, वहाँ से भी व्यापारिक कार्य हो रहे हैं. पुलिस - प्रशासन के आने के बाद कुछ देर गतिविधियां रुक जाती हैं और दुकान के मालिक को थाने बुलाया जाता है. जहां चढावा चढाने के बाद पुनः दुकान गुप्त रूप से चालू हो जाती हैं. कहीं - कहीं तो आगे से दुकान बंद लेकिन दुकान के पीछे के भाग से दुकान चालू रहती है. इस तरह की रिपोर्ट राज्य के अधिकतर थाना क्षेत्रों से आ रही है कि स्थानीय थाना वसूली में व्यस्त रहकर मस्त हैं, तो व्यापारी चढावा देने से त्रस्त हैं. वहीं इसका लोड निरीह जनता को ही भुगतना पडता है क्योंकि उन्हें मनमाने दाम पर अपनी जरूरतों को पूरा करना पड रहा है. क्योंकि व्यापारी वर्ग अपनी जेब से या अपने मुनाफे में से भुगतान तो नहीं करेंगे। इसका लोड जनता पर ही देंगे।

(Ajeet Sinha स्टेट ब्यूरो चीफ, झारखंड)
     विश्वस्त सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार बड़े दुकानदार तो चढावा देकर अपनी दुकानदारी चला ही रहे हैं और उनके जाम माल भी इस समय अच्छे दामों में निकले जा रहे हैं. वहीं छोटे दुकानदारों के सामने भुखमरी की समस्या उत्पन्न हो गई है. वे रिस्क लेकर अपने दुकान के अगल - बगल रखकर स्थानीय ग्राहक की बाट जोहते हैं और रिस्क लेकर किसी तरह से उन्हें समान देते हैं. इसी बीच थाने की गाड़ी आ जाती है तो उन्हें भी थाने जा कर चढावा चढाना पड़ता है. कहने का तात्पर्य यह है कि वसूली जोरों पर है।

     राज्य के जिलों के कई दुकानदारों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर पर हमारे संवाददाता को अपनी व्यथा सुनाई कि दुकान खोलें तो या तो जेल जायें या थाने में पैसे देकर छूट कर आयें। इस तरह का खेल आये दिन होते रहता है. समझ में नहीं आ रहा है कि अपने परिजनों की जरूरत को कैसे पूरा करें?

     कहने का तात्पर्य यह है कि सख्त लॉक डाउन पुलिस वर्ग के लिये बहती गंगा में हाथ धोने जैसा है और जिसकी कीमत अन्ततोगत्वा जनता - जनार्दन को ही चुकानी पड़ रही है. इसी तरह से बिना ई-पास के चलने वालों को भी पुलिस के कोपभाजन का शिकार तो होना ही पड रहा है. साथ में उन्हें भी चढावा देकर अपनी गाड़ी को ऑन स्पॉट या थाने में जाकर छुड़ानी पड़ रही है. कहने का मतलब यह है कि जनता - जनार्दन के लिए सजा से कम नहीं है क्योंकि जो कुछ भी चल रहा है, वह मैनेज्ड वे में चल रहा है. सख्त लॉक डाउन तो छलावा ही प्रतीत हो रहा है. अब ये देखना है कि यह सब कब तक चलता है? 

     इसी तरह से शराब की दुकानें भी बेधड़क चल रही है. 24 घंटे झारखण्ड में शराब आपको आराम से मिल जाएगी, चाहे इसके लिए लाईसेंसी दुकानों का सहारा मिले या बिना लाईसेंस के। हो सके सामने से दुकानें, बार, ढाबा बंद मिले लेकिन पीने वालों के लिये गुप्त रूप से व्यवस्था हो ही जाती है. यही झारखण्ड के आजकल के आम दिनों की सच्चाई है जो कि शासन व्यवस्था पर एक प्रश्न चिन्ह है? जिससे कि सख्त लॉक डाउन के छलावा से कम प्रतीत नहीं हो रहा है यानि बीमारी का घटना -बढ़ना अब प्रभु पर निर्भर है क्योंकि झारखण्ड सरकार की व्यवस्था अब पंगु हो गई। जय हिंद 🙏