जयपुर जिला शिक्षा अधिकारी के दुर्व्यवहार से अभिभावकों में रोष

News from - अभिषेक जैन बिट्टू

संयुक्त अभिभावक संघ ने कहा " शिक्षा अधिकारी अपने कर्तव्यों को छोड़कर निजी स्कूलों फीस वसूली में एजेंट के तौर पर काम कर कर रहे है "

     जयपुर। निजी स्कूलों की फीस, सुप्रीम कोर्ट के आदेश, फीस एक्ट 2016 की पालना सहित परीक्षा रद्द होने के बावजूद दसवीं और बारहवीं कक्षा के दुबारा प्री-बोर्ड एक्जाम करवाये जाने को लेकर मंगलवार को संयुक्त अभिभावक संघ के पदाधिकारियों सहित 15 अभिभावकों ने जयपुर जिला शिक्षा अधिकारी रामचन्द्र पिलानियां से मुलाकात, लिखित में शिकायत दर्ज करवाई। इस दौरान स्कूलों से प्रताड़ित हो रहे अभिभावकों ने भी शिक्षा अधिकारी के समक्ष अपनी पीड़ा जाहिर की किन्तु शिक्षा अधिकारी रामचन्द्र पिलानियां ने अभिभावकों पीड़ा समझने की बजाय उन पर फीस जमा करवाने का दबाव बनाया और दुर्व्यवहार करते हुए अपने कार्यालय से बाहर कर दिया। शिक्षा अधिकारी के इस दुर्व्यवहार से अभिभावकों ने रोष जताया और कार्यालय के बाहर शिक्षा अधिकारी के खिलाफ नारेबाजी की और स्कूलों की फीस वसूली का एजेंट करार दिया। 

     मंगलवार को हुई मुलाकात के बाद संयुक्त अभिभावक संघ प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने जिला शिक्षा अधिकारी पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि " जिला शिक्षा अधिकारी अपने कर्तव्यों का पालन कर निजी स्कूलों  की फीस वसूली में एजेंट के तौर पर काम कर रहे है। पिछले सवा सालों में अकेले जयपुर जिले से हजारों की संख्या में जिला शिक्षा अधिकारी को शिकायतें दर्ज करवा चुके है किन्तु स्कूलों की तरफ शिक्षा अधिकारी भी किसी भी शिकायत पर ना कार्यवाही कर रहे है और ना ही अभिभावकों को कोई जवाब दे रहे है। 

     संघ के प्रदेश अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल ने कहा की " निजी स्कूल संचालक अभिभावकों के साथ-साथ छात्र-छात्राओं के साथ भी दुर्व्यवहार करने पर उतारू हो गए है, फीस के चलते पहले अभिभावकों को प्रताड़ित किया जा रहा था अब छात्र-छात्राओं को प्रताड़ित करने का कार्य कर रहे है। अभिभावकों के पास काम-धंधे नही वह पहले ही डिप्रेशन का शिकार हो चुके है अब छात्रों की पढ़ाई और एक्जाम रोककर फेल करने की धमकियां छात्रों को डिप्रेशन का शिकार बना रहे है। इन्ही शिकायतों को लेकर जिला शिक्षा अधिकारी से मुलाकात पर लिखित पत्र दिया गया। पत्र देने से पूर्व शिक्षा अधिकारी से चार बार फोन कर समय मांगा किन्तु उन्होंने मीटिंग का हवाला दिया शिक्षा संकुल परिसर में 2 घण्टे के अंतराल के बाद शिक्षा अधिकारी के कार्यालय पहुंचे तो वह विभाग के अधिकारियों और अभियर्थियों के साथ सुनवाई कर रहे थे। इसी दौरान उन्हें संयुक्त अभिभावक संघ की और से लिखित शिकायत दर्ज करवाई किन्तु शिकायत पर कार्यवाही ना कर अभिभावकों पर ही सवाल खड़े कर दिए और फीस जमा करवाने को कहा। 

     शिक्षा अधिकारी रामचन्द्र पिलानियां ने वार्ता के दौरान कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अभिभावकों को फीस जमा करवाने को कहा है वह फीस क्यो नही जमा करवाते, फीस जमा नही करवाएंगे तो स्कूल संचालक अपनी मनमर्जी तो करेंगे ही। सुप्रीम कोर्ट ने यह नही कहा कि फीस जमा नही होगी तो बच्चों की पढ़ाई जारी रहेगी। 

     वार्ता के दौरान प्रदेश विधि मामलात मंत्री एडवोकेट अमित छंगाणी ने शिक्षा अधिकारी को मोबाइल पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रति पढ़कर आदेश में लिखित पैरा नम्बर 117 पढ़कर सुनाया। जिसमे सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट कहा था कि फीस के चलते कोई भी स्कूल ना पढ़ाई रोक सकता है ना एक्जाम और ना ही रिजल्ट रोक सकता है। साथ शिक्षा अधिकारी को यह भी बताया गया कि अधिकतर अभिभावकों के साथ काम-धंधे की सबसे बड़ी समस्या चल रही है, सवा सालों में अधिकतर अभिभावक अपने परिवार का पालन-पोषण तक नही कर पा रहे है ऐसे में वह कैसे फीस जमा करवाये और कहा से फीस जमा करवाये। 

     जो अभिभावक सक्षम है उनसे मनमर्जी की फीस वसूली की जा रही है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने 3 मई को स्पष्ट कहा है कि फीस एक्ट 2016 के अनुसार निर्धारित  2019-20 की फीस का 85 % छह किश्तों में जमा करवानी है किंतु स्कूलों ने पहले दिन से पूरी फीस एक साथ जमा करवाने का दवाव बना रहे है। स्कूलों के जो खर्चे नही हुए वह फीस नही वसूल सकते फिर भी वह फीस भी वसूली जा रही है। नए सत्र में बिना फीस एक्ट की जानकारी के 10 से 25 % फीस विभिन्न स्कूलों ने बढ़ा दी। जो पूरी तरह से गैर-कानूनी है। 

     शिक्षा अधिकारी का कर्तव्य सुप्रीम कोर्ट के आदेश की पालना सुनिश्चित करवाने और दोषियों पर कार्यवाही करने के लिए है स्कूलों के संरक्षण और उनके एजेंट बनाने की भूमिका निभाने के लिए नही है। अगर विभाग अभिभावकों को न्याय नही दिलवाएगा तो अभिभावकों के साथ न्याय कोन करेगा।