Poem from - Narendra Singh "Babal"
'चाँद से इश्क़'
उन दिनों की बात है
चाँद बहुत करीब था |
छूँ नहीं सकता था लेकिन
देखना नसीब था ||
(Narendra Singh "Babal") |
था बहुत नादाँ मग़र
वह भी सच्चा प्रेम था |
इक ज़मीं के परिन्दे (चकोर) का
चाँद से इश्क़ क्या अजीब था ?
अब हों जैसे रात अमावस की
चाँद दिखता ही नहीं |
पूछता है बबल ख़ुदा से
तू तो नहीं कोई रक़ीब था ?