" माँ " को देखकर

From - VINAY.

अपनी बेहद बूढ़ी "माँ" को देखकर

क्या सोचा है कभी ...?

वो भी कभी कालेज में कुर्ती और 

स्लैक्स पहन कर जाया करती थी..

तुम हरगिज़ नहीं सोच सकते .. कि

तुम्हारी "माँ" भी कभी घर के आँगन में

चहकती हुई, उधम मचाती दौड़ा करती थी ..तो

घर का कोना - कोना गुलज़ार हो उठता था...

किशोरावस्था में वो जब कभी

अपने गीले बालों में तौलिया लपेटे

छत पर आती, गुनगुनानी धूप में सुखाने जाती थी, तो ..

न जाने कितनी पतंगे आसमान में कटने लगती थी..

क्या सोचा है कभी ...?

अट्ठारह बरस की "माँ” ने

तुम्हारे चौबीस बरस के पिता को

जब वरमाला पहनाई, तो मारे लाज से

दोहरी होकर गठरी बन, अपने वर को 

नज़र उठाकर भी नहीं देखा..

तुमने तो कभी ये भी नहीं सोचा होगा, कि

तुम्हारे आने की दस्तक देती उस

प्रसव पीड़ा के उठने पर

कैसे दाँतों पर दाँत रख 

अस्पताल की चौखट पर गई होगी

क्या सोच सकते हो कभी ..?

अपने जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि

तुम्हें मानकर अपनी सारी शैक्षणिक डिगरियाँ 

जिस संदूक में अखबार के पन्नो में

लपेट कर ताला बंद की थी

उस संदूक की चाबी आज तक उसने नहीं ढूँढी...

और तुम

उसके झुर्रिदार काँपते हाथों, क्षीण याददाश्त,

कमजोर नज़र और झुकी हुई कमर को देखकर

उनसे कतराकर खुद पर इतराते हो 

ये बरसों का सफ़र है ...!

तुम कभी सोच भी नहीं सकते ...!!