स्वामी विवेकानन्द

From - Daya Nidhi 

     स्वामी विवेकानन्द या नरेन्द्र नाथ दत्त, एक अद्भुत व्यक्तित्व, वेदान्त के विख्यात और प्रभावशाली आध्यात्मिक गुरु थे। उनका जन्म 12 जनवरी सन्‌ 1863 को कलकत्ता में, एक कायस्थ परिवार में हुआ था, उनके पिता कलकत्ता हाईकोर्ट में प्रसिद्ध वकील थे।

     1879 में उन्होंने प्रेज़िडेन्सी कॉलेज में दाख़िला लिया, परंतु 1880 में उनका झुकाव अध्यात्म की तरफ़ हो गया। 25 वर्ष की आयु में वे रामकृष्ण परमहंस के शिष्य बन गए और गेरुआ वस्त्र धारण कर लिए, रामकृष्ण मिशन की स्थापना की तथा पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। 31 मई 1893 उन्होंने अपनी वैश्विक यात्रा शुरू की और सब से पहले जापान गए, फिर चीन और कनाडा होते हुए अमरीका के शिकागो शहर में हो रही विश्व धर्म परिषद में भारत का प्रतिनिधित्व किया। उस समय की परिस्थितियों में भारतीयों को बहुत हीन दृष्टि से देखा जाता था, वहाँ पर लोग विवेकानंद को बोलने ही नहीं देना चाहते थे, परंतु जब वे बोले तो उनके विचारों से वहाँ के लोग मंत्रमुग्ध रह गए, वहाँ की मीडिया ने उन्हें साइक्लॉनिक हिन्दू का नाम दिया। 

     अमरीका में उन्होंने रामकृष्ण मिशन की अनेक शाखाएँ स्थापित कीं। उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानन्द जो काम कर गये वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने एक बार कहा था-"यदि आप भारत को जानना चाहते हैं तो विवेकानन्द को पढ़िये, उनमें आप सब कुछ सकारात्मक ही पायेंगे, नकारात्मक कुछ भी नहीं।" वे कहते थे "तुमको कार्य के सभी क्षेत्रों में व्यावहारिक बनना पड़ेगा, सिद्धान्तों के ढेरों ने सम्पूर्ण देश का विनाश कर दिया है"। जीवन के अन्तिम दिनों में उन्होंने शुक्ल यजुर्वेद की व्याख्या की और कहा-"एक और विवेकानन्द चाहिए"। आज ही के दिन 4 जुलाई 1902 को उन्होंने ध्यानावस्था में ही महासमाधि ले ली।