डीजल के दाम में बढ़ोतरी के सामने नगण्य है, न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी – रामपाल जाट

News from - गोपाल सैनी (कार्यालय सचिव-किसान महापंचायत)

     दिल्ली. आज केंद्र सरकार ने रबी उपजों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की है. न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी डीजल के दामों में हुई बढ़ोतरी के सामने नगण्य है। यथा जहाँ डीजल के दामों में एक लीटर पर एक वर्ष में 40 रूपये तक की बढ़ोतरी हुई, वहीँ इन 6 फसलों के दामों में बढ़ोतरी अधिकतम 1 किलो पर 4 रुपये है। इसी प्रकार मूल्य सूचकांक के अनुसार कर्मचारियों के लिए 22% तक की बढ़ोतरी हुई है, वहीँ इन फसलों के दामों में बढोतरी उसकी तुलना में एक चौथाई भी नहीं है।

(रामपाल जाट)

     न्यूनतम समर्थन मूल्य की सार्थकता तभी है, जब उस पर खरीद हो या देश में ऐसा कानून हो जिसके कारण जिन उपजों का भी उपज का न्यूनतम समर्थन घोषित होता. उनका न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर क्रय-विक्रय को दंडनीय अपराध हो। अभी किसानों को अपनी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर बेचने को विवश होना पड़ता है। दूसरी ओर चना, मसूर, सरसों एवं सूरजमुखी के उत्पादन में से  75% उपजों को खरीद की परिधि से बाहर कर वस्तुतः इनका न्यूनतम समर्थन मूल्य ही समाप्त कर दिया। उसके उपरांत भी बची 25% उपज की भी खरीद नहीं की जाती है. वह भी किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में बेचनी पड़ती है। 

     यह स्थिति तो तब है जब सरकार खाने के तेल एवं दालों के आयात पर देश की मुद्रा को पानी की तरह विदेशों में बहाती है। एक वर्ष में ही 1 लाख 33 हजार करोड़ रुपए आयात पर खर्च किया जाना आश्चर्य का विषय है। खरीद के संबंध में सरकार गंभीर नहीं है बल्कि उन्होंने उसके लिए ऐसी नीति बनाई हुई है, जिससे जौ की तो खरीद तक नहीं होती, इसी क्रम में गेहूं की खरीद पंजाब, हरियाणा एवं मध्य प्रदेश जैसी अन्य किसी भी प्रदेश मे नहीं होती है। वही किसानों को अपना गेहूं न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर बेचना पड़ता है. खरीद के संबंध में सरकार गंभीर नहीं है बल्कि उन्होंने उसके लिए ऐसी नीति बनाई हुई है। जिस पर जो की खरीद नहीं होती.

     इसी क्रम में गेहूं की खरीद पंजाब, हरियाणा एवं मध्य प्रदेश जैसी अन्य किसी भी प्रदेश में खरीद नहीं होती है। वही किसानों को अपना गेहूं न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेचना पड़ रहा  है। सरकार विविधिकरण की चर्चा तो करती है परन्तु गेंहू एवं धान की खरीद जैसी निति जौ जैसे मोटे अनाजों की नहीं रखकर भेदभाव करके फसलों के  विविधिकरण को बिगाडती है । ऐसी स्थिति में न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की सार्थकता पर संकट के बादल छाए रहते है। इसके उपरांत भी किसानों को उनकी उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य दिलाने के लिए खरीद की गारंटी हेतु सरकार कानून बनाने को तैयार नहीं है।