Poem from - Jyotsna Mathur
थोड़ा घबरा गई थी मैं ।
और जब बन संवर गई ,
खुद ही शरमा गई थी मैं ।
चेहरे की त्वचा ,थोड़ी ढीली हुई तो क्या,
उम्र भी थोड़ी बढ़ गई तो क्या,
बाल सफ़ेद अब आने लगे हैं ।
कलर है न ,
लगा के हम भी तो इतराने लगें हैं ।
यह भी इक पड़ाव है जिंदगी का
हम सब के मध्य आएगा।
बचपन आया ,जवानी आई ,
तो क्या बुढ़ापा न आएगा ?
समय का बस आप मज़ा लीजिए,
क्या कुछ छूटा परवाह न कीजिए।
जो है बस उसे भर कर जिएं
लुत्फ़ ज़िंदगी का उठा लीजिए।
आधी से ज्यादा कट गई,
न जाने कितने पल बचें है।
यह सब सोचकर न घबराया कीजिए,
जिंदगी है उसे जिंदगी की तरह लिया कीजिए..💕