News from - किसान महापंचायत
जयपुर। मौसम की मार के कारण खरीफ की फसलें खराब हुई. वही रबी की फसलों की बुवाई में निरंतर बाधा आ रही है। मानव व्यवस्था के अंतर्गत बनी सरकारों के कारण डीएपी खाद और बिजली का संकट फसल बुवाई में किसानों के लिए बाधक बने हुए ।
(रामपाल जाट) |
पड़ोसी हरियाणा, मध्य प्रदेश एवं गुजरात में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बाजरा बेचने का विकल्प उपलब्ध है किंतु राजस्थान में यह विकल्प भी उपलब्ध नहीं है । जबकि देश भर में बाजरे की सर्वाधिक उपज राजस्थान में ही है। राज्य सरकार जहां अपने राज धर्म को नहीं निभा पा रही है, वही केंद्र सरकार की नीतियों के कारण किसानों को बाजरा बेचने का अवसर नहीं मिल रहा है । केंद्र एवम राज्य में अलग-अलग दलों की सरकार होते हुए भी दोनों में ही किसानो के लिए संवेदनहीनता बनी हुई है ।
केंद्र और राज्य सरकार एक दूसरे पर आरोप लगाकर राजनीति करने के बजाय मिलकर बाजरा, मक्का, ज्वार जैसे मोटे अनाजों की खरीद के संबंध में सार्थक पहल करें तो श्रेयस्कर रहेगा। इसी प्रकार मूंग की स्थिति है. जिसका आधा उत्पादन तो अकेले राजस्थान में होता है । केंद्र की नीति के अनुसार कुल उत्पादन में से 75 प्रतिशत उत्पादन को तो खरीद की परिधि से बाहर किया हुआ है । जिससे किसान अपना 25% उत्पादन ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेच पाएंगे । शेष उत्पादन को तो 2000 रुपये प्रति क्विंटल का घाटा उठाकर बेचना पड़ेगा ।
यही स्थिति मूंगफली की है जिसकी भी कुल उत्पादन में से 25 प्रतिशत मूंगफली न्यूनतम समर्थन मूल्य पर बेच पाएंगे शेष 75 प्रतिशत उत्पाद को घाटा उठा कर ही बेचना पड़ेगा। ज्ञात रहे कि मोटे अनाजों की खरीद की नीति 21.03.2014 को प्रभाव में आयी जिससे गेँहू एवम धान से मोटे अनाज की खरीद नीति में भेदभाव उत्पन्न हुआ। इसी तर्ज पर प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान के कठोर प्रावधान 2018 से प्रभाव में आने के कारण दलहन एवम तिलहन की कुल उत्पादन में से 75 प्रतिशत उत्पादों को खरीद की परिधि से बाहर किया गया है।