Video from - Praveen Saxena
जयपुर। यह कैसा जश्न का माहौल था ? किसी को भी पवित्र मुद्रा का ध्यान नहीं. मुद्रा तो वो चीज है जिसको बच्चे भी नहीं फेंकते हैं फिर यहाँ तो सब व्यस्क, जवान और बुजुर्ग व्यक्ति थे. यह किसान थे या कोई देश द्रोही ? क्योंकि किसान तो ऐसा अपमान मुद्रा का नहीं कर सकता। वह जनता है रूपये की कीमत क्या होती है? फिर किसने इस पवित्र भारतीय मुद्रा को कदमों तले रौंदा ?
क्या इस अशोभनीय कृत्य के लिए किसी को भी इनमेसे किसी को शर्म नहीं आई ? आश्चर्य की बात यह भी है कि अभी तक इस पर किसी ने संज्ञान भी नहीं लिया। ना तो किसी ने किसानो के इस कृत्य पर नाराजगी जाहिर की और नाही किसी ने दुःख प्रकट किया।यह दुःख भरा नजारा देखने को मिला तथा कथित किसान आंदोलन की समाप्ति के अवसर पर. जब सरकार ने विवादित बिल को संसद के दोनों सदनों से वापिस ले लिया और बिना किसी शर्त के किसानो की मांगों को मान लिया। इसे अपनी जीत बताते हुए किसानो ने साल भर से बंद रास्तों को खोलते हुए, ऐसा भोंडा प्रदर्शन किया. भारतीय मुद्रा को जम कर सड़कों पर उछाला गया और उसे क़दमों से रौंदा गया. ऐसा करते हुए सभी बहुत खुश हो रहे है परन्तु मुझे यह समाचार लिखते हुए इन लोगों पर बहुत शर्म आ रही है.