सरकारी स्कूलों में बच्चों की ड्रेस की बजाय अध्यापकों का चरित्र बदले सरकार - संयुक्त अभिभावक संघ

 News from -  अभिषेक जैन बिट्टू

     जयपुर। स्कूलों को देश के बेहतर भविष्य का मार्ग और शिक्षा के लिए सबसे बड़ा मन्दिर बताया गया है। अब इन्ही शिक्षा मन्दिरो को राज्य की अव्यवस्थाओ की नजर लग चुकी है। एक ओर जहां अभिभावक अपनी बच्चियों को उज्ज्वल भविष्य के लिए स्कूलों में भेजती है और शिक्षकों के हाथों में सौपती है। तो वही दूसरी तरफ शिक्षक है जो अभिभावकों के विश्वास का नाजायज फायदा उठाकर गुरु-शिष्य के रिश्तों को तार-तार कर ना केवल अभिभावकों को डरा रहे है बल्कि शिक्षकों पर से विश्वास उठा रहे है और शिक्षा के मन्दिरो को कलंकित कर रहे है। 

     संयुक्त अभिभावक संघ प्रदेश अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल ने कहा कि " राज्य सरकार को सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाली गरीब परिवारों के बच्चे-बच्चियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी लेनी चाहिए और सरकारी स्कूलों में ड्रेस बदलने की बजाय शिक्षकों, अध्यापकों के चरित्र को बदलने की व्यवस्था सुनिश्चित करनी चाहिए। " पिछले डेढ़ सालों में प्रदेशभर में 3 दर्जन से अधिक मामले सरकारी स्कूलों में सामने आए है बावजूद इसके सरकार ने अभी तक कोई ठोस कदम नही उठाये है। बच्चियों की सुरक्षा को लेकर गुरुवार को एक बार फिर मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर अभिभावकों का पक्ष रखा गया है। जिसमे शिक्षकों का चरित्र प्रमाण, स्कूलों में सीसीटीवी कैमरे सहित 10 मांगों को रखा गया है।

*शिक्षा के मंदिर अब शिक्षकों की अय्याशी के अड्डे बनते जा रहे है - अभिषेक जैन बिट्टू*

     संयुक्त अभिभावक संघ प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा कि प्रदेश के निजी स्कूल हो या सरकारी स्कूल बच्चे और बच्चियों को लेकर कोई भी सुरक्षित नही है, शिक्षा के मन्दिर अब शिक्षकों की अय्याशी के अड्डे बनते जा रहे है जिसमें सरकारी स्कूलों की व्यवस्था तो दर्दनिय है जहां पर रक्षक ही भक्षक की भूमिका अदा कर रहा है। जबकि सरकारी और निजी स्कूलों को लेकर संयुक्त अभिभावक संघ पहले भी 5 बार इस बारे में मुख्यमंत्री को ज्ञापन दे चुका है। किन्तु राज्य सरकार अपनी हठधर्मिता का प्रदर्शन कर वोटों के चलते अय्याश शिक्षकों पर कार्यवाही करने से डर रही है। संयुक्त अभिभावक संघ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मांग करता है कि प्रदेश के सभी सरकारी और निजी स्कूलों के अध्यापकों का मासिक चरित्र प्रमाण अनिवार्यता से लागू करवाया जाए, जिसमे अभिभावक और छात्र-छात्राएं का आवश्यक मत को प्राथमिकता दी जाए। प्रत्येक स्कूलों में सुरक्षा की दृष्टि के साथ सीसीटीवी कैमरे लगाए जाएं किन्तु आज तक मूल मुद्दों पर कार्य ना कर राजस्थान सरकार बच्चों की ड्रेस बदलने पर व्यस्थ है, जबकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और शिक्षा मंत्री बीड़ी कल्ला को विचार करना चाहिए कि जब बच्चियों की अस्मिता ही सुरक्षित नही रहेगी तो बच्चियों के ड्रेस बदलने से वह कैसे सुरक्षित रहेगी।

लवर सहित प्रदेशभर के सरकारी स्कूलों में बच्चियां नही है सुरक्षित, दोषी शिक्षकों को सरेआम फांसी पर लटकाया जाए - खुशबू शर्मा

     संघ प्रदेश विधि मामलात संयुक्त मंत्री एडवोकेट खुशबू शर्मा ने कहा कि अलवर में छात्राओ के साथ कि गई बर्बरता ने प्रदेश को आइना दिखाया है क्यों अभिभावक सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को नही भेजते उसका प्रणाम दर्शाया है। भले ही यह मामला अलवर के भिवाड़ी शहर का हो किन्तु इससे पूर्व में भिवाड़ी का ही एक मामला सामने आया था, पिछले डेढ़ सालों के दौरान राजधानी जयपुर सहित जोधपुर, उदयपुर, भीलवाड़ा, बीकानेर, श्रीगंगानगर, कोटा सहित तमाम सभी शहरों व ग्रामीण क्षेत्रों के सरकारी स्कूलों की घटनाएं सामने आ चुकी है।

      प्रदेश के सरकारी स्कूल बच्चियों के लिए बिल्कुल भी सुरक्षित नही है मुख्यमंत्री प्रदेश में बेहतर शिक्षा व्यवस्था के थोथले वादे और दावे तो खूब करते है किंतु वह हकीकत देखना ही नही चाहते। पूरे प्रदेश में कानून विकलांग बन चुका है अपराधियो में कानून को लेकर कोई डर नही रहा। जिसे मुख्यमंत्री को गम्भीरता से लेना चाहिए। शिक्षा के मन्दिरो में अत्याचार करने वाले सभी शिक्षकों की भले ही पास्को एक्ट में सुनवाई होती हो किन्तु दोषी शिक्षकों को बन्द जेलों की बजाय सरेआम, बीच चौराहे पर फांसी की सज़ा दी जानी चाहिए।