From - Chandra Veer Singh
मैंने एक फूल से पूछा:
कल तुम मुरझा जाओगे!
फिर क्यों मुस्कुराते हो?
व्यर्थ में यह ताजगी!
किस लिये लुटाते हो?
फूल चुप रहा!
इतने में एक तितली आई!
पल भर आनन्द लिया!
और उड़ गई!
एक भौंरा आया!
गान सुनाया!
सुगन्ध बटोरी!
और, आगे बढ गया!
एक मधुमक्खी आई!
पल भर भिनभिनाई!
पराग समेटा, और
झूमती गाती चली गई।
खेलते हुए एक बालक ने
स्पर्श सुख लिया!
रूप-लावण्य निहारा!
मुस्कुराया और
खेलने लग गया!
तब फूल ने कहा: मित्र!
क्षण भर को ही सही:
मेरे जीवन ने कितनों
को सुख दिया!
क्या तुमने भी कभी,
ऐसा किया?
कल की चिन्ता में,
आज के आनन्द में,
विराम क्यों करूँ?
माटी ने जो
रूप, रंग, रस, गन्ध दिये!
उसे बदनाम क्यों करूँ?
मैं हँसता हूँ! क्योंकि
हँसना मुझे आता है!
मैं खिलता हूँ! क्यों कि
खिलना मुझे सुहाता है!
मैं मुरझा गया तो क्या?
कल फिर एक
नया फूल खिलेगा!
न कभी मुस्कान
रुकी है, न ही सुगन्ध!
जीवन तो एक,
सिलसिला है!
इसी तरह चलेगा!
जो आपको मिला है
उस में खुश रहिये!
और प्रभु का
शुक्रिया कीजिये!
क्यों कि आप जो
जीवन जी रहे हैं
वो जीवन कई लोगों ने
देखा तक नहीं है!
खुश रहिये!
मुस्कुराते रहिये!
और अपनों को भी
खुश रखिये!
क्योंकि
*इंसान की सोच
अगर तंग हो जाती हैं,*
*तो ये खूबसूरत जिन्दगी भी
एक जंग हो जाती हैं।*