चुनावी राज्यो के मतदाताओं को केंद्र सरकार की रेवड़ियां, अभिभावकों और छात्रों के हाथों में झुनझुना - संयुक्त अभिभावक संघ

News from - अभिषेक जैन बिट्टू

बजट 2022 ....

साल दर साल लगातार शिक्षा पर बजट घटा रही है केंद्र सरकार, अभिभावकों में निराशा

     जयपुर। केंद्र सरकार ने 2022-23 का बजट मंगलवार को देश के समक्ष पेश कर दिया, आगामी बजट को लेकर अभिभावक और छात्रों को बहुत आशाएं थी किंतु केंद्र सरकार और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आशाओं को निराशा में बदल दिया। बजट को लेकर संयुक्त अभिभावक संघ ने केंद्र सरकार पर चुनावी बजट पेश करने और स्कूलों के दबाव में अभिभावकों की मांगों को दरकिनार करने का आरोप लगाया और अभिभावकों और छात्रों की भावनाओ से खिलवाड़ करने का भी आरोप लगाया। 

     संयुक्त अभिभावक संघ ने कहा कि केंद्र सरकार ने भले ही बजट पेश किया हो किन्तु यह बजट पूरी तरह से चुनावी राज्यों के मतदाताओं को रिझाने वाला बजट है, इस बजट से राजस्थान ही नही बल्कि देशभर के अभिभावकों और छात्रों के हाथों में झुनझुना थमा दिया गया है। जिस प्रकार देश में माध्यम आयवर्गीय परिवारों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया है उसी तरह अभिभावकों और छात्रों को भी उनके हाल पर ही छोड़ दिया गया है। इस समय अभिभावक बन्द पड़े स्कूलों और ऑनलाइन एजुकेशन की फीस को लेकर सरकार की और तकतकी लगाए हुए बैठे थे किंतु केंद्र सरकार ने डीटीएच एजुकेशन का झुनझुना पकड़ा दिया।

     संयुक्त अभिभावक संघ राजस्थान प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने कहा कि आगामी बजट को लेकर आशाएं थी और सरकार से तीन मांगे की थी, किन्तु केंद्र सरकार ने शिक्षा प्रति गम्भीरता दर्शाने की बजाय अगंभीरता का माहौल अभिभावकों के बीच बना दिया और पिछले 2 बजट की तरह इस बार के बजट में भी कटौती दर्शा दी। पूर्व के दो बजट में केंद्र सरकार ने 2020-21 में 59845 करोड़ रु का बजट पेश किया था और 2021-22 में 54873 करोड़ का बजट पेश किया था जिसमें 5 हजार करोड़ रु की कटौती देखी गई थी और इस बार जो बजट पेश किया गया है जिसमे शिक्षा को लेकर केंद्र सरकार ने कुछ भी नही दिया है उससे प्रतीत होता है कि इस बार शिक्षा के बजट में 10 हजार करोड़ रु से अधिक की कटौती की है। 

     पिछले दस बजट की बात करे तो 2010-11 में शिक्षा को लेकर 33214 रु बजट आवंटित किया गया था, उस दौरान शिक्षा पर 36433 करोड़ खर्च किये गए थे और 2017-18 में 46356 करोड़ रु का बजट आवंटित किया गया था, उस दौरान शिक्षा पर 46600 करोड़ रु खर्च किये गए थे। इन दो बजट को छोड़ दिया जाए तो आज तक शिक्षा पर जितने भी बजट आवंटित किए गए थे उन्हें खर्च तक नही किया गया। वर्ष 2013-14 में बजट का 89 % और 2014-15 में 83 % शिक्षा पर खर्च किया गया था जो सरकारों की शिक्षा के प्रति दुर्दशा साफ दिखाते है।

     प्रदेश अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल ने कहा कि कोविड़ के चलते देश की शिक्षा व्यवस्था बहुत बुरे दौर से गुजर रही है ना छात्रों को उचित और बेहतर शिक्षा व्यवस्था मिल रही है ना अभिभावकों को फीस को लेकर न्याय मिल रहा है देशभर के स्कूल, सरकार और प्रशासन की मिलीभगत जमकर अभिभावकों और छात्रों को निशाने पर रखकर कानून की धज्जियां उड़ाते हुए जमकर लूट रहे है, जिम्मेदार लोग चुप्पी साधकर अभिभावकों को प्रताड़ित और अपमानित कर रहे है। एक रिपोर्ट के मुताबित निजी स्कूलों की मनमानियों के चलते ग्रामीण इलाकों में सरकारी स्कूलों में 70 से 80 प्रतिशत नामांकन बढ़ तो गए है और शहरी इलाकों में 20 से 30 प्रतिशत नामांकन बढ़ गए किंतु बिना टीसी उन्हें एडमिशन नही मिल रहे है। वही ग्रामीण इलाकों में प्राइवेट स्कूलों में 40 से 50 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 10 से 20 प्रतिशत छात्रों की संख्या घट गई है।

     बेसक कोरोना काल देश के घातक साबित हुआ हो किन्तु स्कूलों को लेकर वह अभिभावकों में जागरूकता लेकर आया है। अभिभावकों में स्कूलों और फीस को लेकर आई जागरूकता के चलते स्कूल संचालक अब अपनी मनमानियों पर उतारू हो गए है, जिसको सरकार और प्रशासन भी अपना संरक्षण दे रहे है। स्कूलों के दबाव के चलते ना केंद्र सरकार अभिभावकों और छात्रों पर कोई ध्यान से रही है ना ही राज्य सरकारें कोई ध्यान दे रही है। जबकि हकीकत देखे तो कोरोना काल की सबसे बड़ी मार अभिभावकों पर ही पड़ी है.

      आज राजस्थान का ही नही बल्कि देशभर का अभिभावक आर्थिक-संकट के गम्भीर से गम्भीर दौर से गुजर रहा है, वह उधार लेकर, आधी, एक चौथाई सैलरी के सहारे अपने परिवार का पालन पोषण करने पर मजबूर हो रहे है और स्कूल पूरी फीस का दबाव बना रहा है। निजी स्कूलों की वजह से अभिभावकों पर दोहरे संकट खड़ा हो गया है जिसकी वजह से आज बड़ी संख्या में छात्र पढ़ाई से वंचित हो रहा है। सरकारी स्कूलों में दाखिला करवाने से भी अभिभावकों को राहत नही मिल रही है सरकारी स्कूलों में फैली अव्यवस्थाएं भी अभिभावकों को लगातार निराश कर रही है। 

अभिभावकों ने रखी थी 3 प्रमुख मांग

     अभिषेक जैन बिट्टू ने जानकारी देते हुए बताया कि राजस्थान सहित दिल्ली, यूपी, पंजाब, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश आदि राज्यों के अभिभावकों को केंद्र सरकार के बजट से बहुत आशाएं थी, अभिभावकों ने इस बजट को लेकर केंद्र सरकार से 3 प्रमुख मांगे रखी थी। किन्तु वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अभिभावकों की मांगों पर ध्यान तक नही दिया, जिसका खामियाजा केंद्र सरकार को भुगतना होगा। 

अभिभावकों की मांगे :- 

- एक राष्ट्र एक शिक्षा

- ऑनलाइन एजुकेशन बोर्ड का गठन

- स्कूलों में देश के कानून और सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान तय करवाने जैसी यह 3 प्रमुख मांगे रखी गई थी।