News from - अभिषेक जैन बिट्टू
मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर की मांग निजी और सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की हो हर तीन महीनों में चरित्र जांच
जयपुर। स्कूलों को शिक्षा का मंदिर कहा जाता है किंतु इन दिनों योजनाबद्ध तरीके से इन शिक्षा के मंदिरों को बदनाम कर शिक्षा का अपमान किया जा रहा है। प्रदेश के निजी और सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के होते चरित्र उजागर पर संयुक्त अभिभावक संघ ने चिंता जताई और कहा की प्रदेश में जहां पहले लड़कियां घरों, मोहल्लों और बाज़ारों में असुरक्षित थी वही अब शिक्षा के मंदिरों में भी असुरक्षित होती जा रही है, स्कूलों में शिक्षकों के द्वारा बच्चियों पर लगातार अत्याचार की घटनाएं सामने आ रही है किंतु राज्य सरकार बच्चियों की सुरक्षा को लेकर बिल्कुल भी गंभीर नही है। संयुक्त अभिभावक संघ ने मंगलवार को एक बार पुनः मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को पत्र लिखकर स्कूलों में बच्चियों की सुरक्षा की मांग की।
संघ प्रदेश प्रवक्ता अभिषेक जैन बिट्टू ने बताया कि 13 फरवरी को कोटा में एक शिक्षक द्वारा बच्ची को एक्स्ट्रा क्लास के बहाने घर बुलाकर उसकी हत्या कर दी, उसके बाद सोमवार को लालसोट में शिक्षक द्वारा 10 वीं की छात्रा के साथ छेड़छाड़ का मामला सामने आया। इसे पूर्व में भी जोधपुर, पाली, अजमेर, झुंझनु, राजधानी जयपुर, बाड़मेर, बीकानेर, उदयपुर सहित प्रदेशभर के सभी जिलों से बच्चियों के साथ छेड़छाड़, अत्याचार और दुष्कर्म के मामले स्कूली शिक्षकों के द्वारा किये गए, जिस पर भी लगातार शिलायतें दर्ज करवाई गई किन्तु राज्य सरकार और प्रशासन ने बच्चियों की सुरक्षा को लेकर कोई गम्भीरता नही दिखाई और ना ही इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाए, आज अगर सरकार और प्रशासन बच्चियों की सुरक्षा के प्रति गम्भीरता दिखाते तो प्रदेश में नाबालिग बच्चियों की शर्मशार नही होना पड़ता।प्रदेश विधि मामलात मंत्री एडवोकेट अमित छंगाणी ने कहा कि मंगलवार को बच्चियों की सुरक्षा को लेकर मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर पुरानी मांगों को वापस दोहराया है। सरकार से बच्चियों की सुरक्षा को लेकर निजी और सरकारी स्कूलों, स्टाफ और संचालकों के हर तीन महीनों में चरित्र की जांच की जाए, स्कूल के सभी कमरों, लैब और हॉल में सीसीटीवी कैमरे अनिर्वायता के साथ लगाने के निर्देश दिए जाएं।
चरित्र जांच में अभिभावकों, छात्रों, शिक्षकों, स्टाफ और संचालको के सुझावों के आधार पर शिक्षक का चरित्र प्रमाण पत्र जारी किया जाए। प्रत्येक स्कूल के सभी अभिभावकों, छात्रों, शिक्षकों, स्टाफ और संचालकों को हर तीन महीनों में इसमें शामिल होने की अनिवार्यता रखी जाए। राज्य सरकार अगर यह निर्देश देती है तो काफी हद तक बच्चियों को सुरक्षित रखा जा सकेगा।