ऋण मुक्ति और पूरे दाम की कृषि बजट में चर्चा नहीं होना विस्मयकारी – रामपाल जाट

 News from -  किसान महापंचायत 

किसानो की खुशहाली का “ऋणमुक्ति और पूरे दाम” मूलमंत्र होते हुए भी कृषि बजट में उसकी चर्चा नहीं होना विस्मयकारी है । “कृषि क्षेत्र की स्थिति ठीक नहीं है तो किसी अन्य क्षेत्र की प्रगति संभव नहीं है” डॉक्टर एम. एस. स्वामीनाथन के इस कथन की तो चर्चा की गयी किंतु किसानों की आय सिविल कर्मचारियों से तुलना योग्य बनाने की अनुशंसा को भूल गए। जिसे लागू करने की तिथि 15 अगस्त 2007 को 14 वर्ष पूरे हो चुके हैं । 

     घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्त नहीं होने से प्रतिवर्ष डेढ़ लाख करोड़ का घाटा होता है । उसके अनुसार किसानों का 21 लाख करोड़ रूपये सरकार पर बकाया है । देश में किसानों पर संपूर्ण बकाया ऋण 16 लाख करोड रुपए से कम है । सरकार टेबिल  पर हिसाब करें तो किसान लेनदार और सरकार देनदार है, इसमें राजस्थान राज्य का भी अंश सम्मिलित है । फिर 10 दिन में संपूर्ण ऋण माफी की घोषणा सत्तारूढ़ दल के हाईकमान द्वारा की गई एवं इसका विधानसभा के चुनाव घोषणा पत्र में उल्लेख किया गया। उत्तर प्रदेश के चुनावी घोषणा पत्र में भी उसे दोहराया जा रहा है । 10 दिन के स्थान पर 1165 दिन का समय व्यतीत होने पर भी ऋण माफी नहीं होने से उनकी कृषि भूमियों की कुर्की एवं नीलामी का दंश किसान झेल रहे हैं, फिर भी किसानों की ऋण मुक्ति के लिए उन को न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्राप्ति की सुनिश्चितता के लिए बाध्यकारी क़ानून बनाने की भी इस बजट में चर्चा नहीं है । यह स्थिति तो तब जब बजट में किसानों को अर्थव्यवस्था की धुरी बताया गया है, वहीं “समृद्ध किसान - खुशहाल राजस्थान” का नारा भी इस बजट में दिया गया है ।

     सकल राष्ट्रीय उत्पाद में कृषि का योगदान 30% है जबकि कृषि बजट में आवंटित राशि का अनुपात सकल राष्ट्रीय उत्पाद का 5.92 प्रतिशत ही है । कुल बजट (मर्गोपाय अग्रिम सहित) 3,46,182 करोड़ में कृषि बजट 78,938 करोड़   है । कृषि बजट की राशि कुल बजट में से 22.80 प्रतिशत है । वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार ग्रामीण जनसँख्या 72 प्रतिशत है, उस अनुपात में 31 प्रतिशत है । 

     इसी प्रकार राजस्थान को कृषि क्षेत्र में देश का अग्रणी राज्य बनाने के लिए खेती की गुणवत्ता एवं कृषि उत्पादकता के साथ साथ कृषि भण्डारण क्षमता को बढाया जाने को अपरिहार्य मानते हुए भी 11,304 ग्राम पंचायतो में 5 लाख मेट्रिक टन के गोदामों के निर्माण की घोषणा नहीं की गयी बल्कि मात्र 100 मेट्रिक टन के 100 गोदामों की निर्माण की घोषणा ही की गयी। 

     ग्राम पंचायत स्तर पर गोदाम बनने से कृषि उपजों को रख कर उनकी रसीदों के आधार पर ब्याज मुक्त ऋण प्राप्त होने से किसान अपनी उपजों को औने-पौने दामों पर बेचने से मुक्ति पा सकते थे। राज्य के किसानो द्वारा दिए गए सुझावों को इस बजट में महत्व नहीं दिया गया । किसानो एवं सरकार के सोच में अंतर होना सरकार द्वारा किसानो एवं कृषि क्षेत्र की उपेक्षा का परिणाम है।