भव्य शोभायात्रा के अष्टानिका पर्व का समापन, इतिहास में पहली बार महिलाएं बनी सारथी

News from - अभिषेक जैन बिट्टू

खेली फूलों और केसर से होली

     जयपुर। शहर के श्याम नगर स्थित आदिनाथ दिगंबर जैन मंदिर, वशिष्ठ मार्ग में अष्टानीका पर्व के उपलक्ष्य में गणिनी आर्यिका गौरवमती माताजी के सानिंध्य में सिद्धचक्र महामण्डल विधान का समापन पर शुक्रवार को श्रीजी के कलाशाभिषेक, शांतिधारा कर एवं 108 महिला पुरुषों द्वारा हवनक्रिया कर संपन्न किया। इसके पश्चात् मंदिरजी प्रांगण से प्रातः 8.30 बजे महिला श्रेष्ठी द्वारा श्रीजी की प्रतिमा को सर पर विराजमान कर अन्य महिलाएं आगे चलकर चंवर के साथ नाचते-गाते हुए बैंड़-बाजों की दिव्य धुनों के साथ चांदी के अद्भुत रथ श्रीजी को विराजमान किया, जिसके बाद यात्रा शोभायात्रा में तब्दील हो गई और श्रीजी को नगर भ्रमण करवाया गया। यात्रा वशिष्ठ मार्ग से प्रारंभ होकर जन पथ सहित विभिन्न मार्गो से होते हुए वापस मंदिर जी प्रांगण पर आकर विसर्जित हुई। इस दौरान जगह - जगह समाज बंधुओ ने परिवार के साथ श्रीजी की मंगल आरती और पुष्पवर्षा की। 

    शुक्रवार को आयोजित भव्य शोभायात्रा में भारत के इतिहास में पहली बार चयनित महिलाएं अद्भुत रथ की सारथी, कुबेर (खजांची), चंवर ढोरने वाली बनी, रथयात्रा गाजे-बाजे और अपार जनसमूह के साथ निकली गई। 

     मदिर समिति अध्यक्ष निहालचंद पांड्या ने जानकारी देते हुए बताया की शनिवार को निकली भव्य रथ शोभायात्रा में अपार जनसमूह देखने को मिला, इस दौरान जब यात्रा जनपथ पर पहुंची जहां पर पंसारी परिवार द्वारा श्रृद्धालुओं को शरबत का वितरण किया गया। यात्रा आगे बढ़ी तो मनु अस्पताल मार्ग, कृष्णा मार्ग पर श्रद्धालुओं ने पुष्पवर्षा कर यात्रा का अभिवादन किया और श्री महावीर मंदिर पर श्रद्धालुओं द्वारा माताजी के पाद प्रक्षालन किये। इस बीच माताजी ससंघ ने मंदिर में श्रीजी के दर्शन किए, वहां से रवाना होकर रथयात्रा पुनः श्री आदिनाथ मंदिर पहुंची तत्पश्चात् सारे भक्तों ने पुष्प और केसर की वर्षा करते हुए गीत-संगीत के साथ होली खेली। 

शोभायात्रा की दो विशेषताएं रही

     पहली- रथयात्रा को आर्यिका संघ का सानिंध्य मिला, काफ़ी समय पश्चात माताजी ससंघ ने रथयात्रा मे शामिल होकर श्रावक समूह और रास्ते में रथयात्रा के श्रद्धालुओं को अपना मंगल आशीर्वाद प्रदान किया* 

 *दूसरा- महिला सशक्तिकरण के परिप्रेक्ष्य में पूरे कार्यक्रम में महिलाएं ही मुख्य थीं, अष्टानीका पर्व के पहले श्रीमती मधु चांदवाड़ और श्रीमती लक्ष्मी देवी पाटनी ने माताजी के समक्ष विधान करने के भाव प्रदर्शित किये और माताजी ने तुरंत अपनी सहमति प्रदान करते हुए इस विधान में अन्य महिलाओं की सहभागिता के लिए दोनों महिलाओं को निर्देशित किया, शुरू में केवल 10 महिलाओ का विधान में सम्मिलित होने का था लेकिन माताजी के दिशा-निर्देशन और प्रमुख महिलाओं के अथक प्रयासों से विधान में सभी 9 दिनों में 85 महिलाओं ने विधान में बैठकर अर्घ चढ़ाये, रथ में श्रीजी विराजमानकर्ती सुधा गंगवाल, खजांची मधु चांदवाड़, सारथी ललिता सबलावत, चंवर धारी अनिता पान्डया, ममता पान्ड्या, रंजु पाटनी, बीना पाटनी बनी व अन्य महिलाओं ने अपने हाथों में ध्वज पताका लहराते हुए रथयात्रा में चार चांद लगा दिए, होली खेलने के बाद अल्पाहार की पून्यार्जक श्रीमती मंजू एवम् मंजूला कोठारी बनीं*
*समाज के सभी पुरुषों ने भी पूरे 9 दिनों के कार्यक्रम में शामिल होकर इस कार्यक्रम को विशिष्ट बना दिया*