निजी स्कूलों की हठधर्मिता, सुप्रीम कोर्ट के आदेश दरकिनार

News from - अभिषेक जैन बिट्टू

प्राइवेट स्कूलों ने 10 से 25 फीसदी तक बढ़ाई फीस, सरकार और प्रशासन चुप

     जयपुर। प्रदेश में निजी स्कूलों की हठधर्मिता थमने का नाम नही ले रही है साथ ही पिछले एक वर्ष से सुप्रीम कोर्ट के आदेश तक को दरकिनार किया जा रहा है। जिसके चलते प्रदेशभर के हजारों अभिभावकों और छात्रों को अच्छी-खासी परेशानियों का सामना तक करना पड़ रहा है। संयुक्त अभिभावक संघ का आरोप है कि प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था को लेकर ना सरकार गंभीर है ना प्रशासन गंभीर है, स्कूलों की शिकायत पर विभाग केवल कागजी कार्यवाही कर टाल देता है जिससे अभिभावकों की समस्याओं का हल बिल्कुल भी नही निकल रहा है। अभी पिछले सत्र का विवाद थमा भी नही था कि निजी स्कूलों ने नए सत्र 2022-23 में मनमाने तरीके से 10 से 25 फीसदी स्कूलों की फीस को बढ़ाकर अभिभावकों पर अतिरिक्त भार ओर थोप दिया है, जबकि सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार फीस एक्ट 2016 कानून की बात की जाती है ना स्कूल जबाव देता है, ना विभाग और ना ही सरकार कोई जवाब देती है ऐसे में अभिभावक जाए तो जाए कहा।

     महामंत्री संजय गोयल ने बताया कि राजधानी जयपुर में नए सत्र की फीस एक्ट 2016 कानून के तहत निर्धारित होनी थी किन्तु स्कूल संचालकों ने अपने मन मुताबित 10 से 25 फीसदी तक स्कूल की फीसों में इजाफा कर अभिभावकों पर थोप दिया। जो पूरी तरह से गैरकानूनी है। इस संदर्भ में अभिभावक राज्य सरकार और शिक्षा विभाग तक शिकायतें पहुंचा रहा है किंतु ना राज्य सरकार अभिभावकों और बच्चों की शिकायत पर ध्यान दे रही है ना विभाग स्कूलो पर कोई कार्यवाही कर रहा है। सरकार और विभाग दोनों स्कूलो माफियाओं को संरक्षण देकर अभिभावकों को प्रताड़ित कर रहे है और बच्चों को पढ़ाई से वंचित कर रहे है।

     प्रदेश विधि मामलात मंत्री एडवोकेट अमित छंगाणी ने बताया कि 03 मई 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने फीस एक्ट 2016 को सही मानते हुए एक्ट से निर्धारित फीस जमा करवाने के आदेश दिए थे। एक्ट 2016 के अनुसार प्रत्येक स्कूल को सर्व प्रथम पीटीए (पेरेंट्स टीचर एसोसिएशन) का गठन करना पड़ेगा। इस एसोसिएशन की सदस्यता के लिए शहरी क्षेत्र में 50 रु सदस्यता शुल्क और ग्रामीण क्षेत्र में 30 रु सदस्यता शुल्क जमा करना अनिर्वाय रहेगा। इसके बाद एसएलएफसी (स्कूल लेवल फीस कमेटी) का गठन करना होगा। इस कमेटी में कुल 10 सदस्य ( 1 स्कूल मैनजमेंट, 1 प्रिंसिपिल,  3 टीचर और 5 अभिभावक) होंगे। एसएलएफसी में जो 5 अभिभावक शामिल होंगे अगर वह 5 से अधिक है तो लॉटरी सिस्टम के तहत 5 अभिभावकों का चयन करना होगा। इसके बाद स्कूल मैनजमेंट को अपने सारे खर्चे एसएलएफसी कमेटी के समक्ष रखने होंगे, उसके बाद ही अगले सत्र की फीस निर्धारित की जा सकेगी। जो फीस निर्धारित होगी वह 3 साल तक वैलिड रहेगी, उससे पहले फीस चार्ट से छेड़छाड़ नही की जा सकती है।

सरकार की मंशा पर भी सवाल, आज तक डीएफआरसी का गठन क्यो नही किया

     जयपुर जिला अध्यक्ष युवराज हसीजा ने कहा कि प्रदेश में एक तरफ निजी स्कूल अपनी हठधर्मिता दर्शा ही रहे है वही दूसरी तरफ राज्य सरकार की नीयत में भी खोट है। राज्य सरकार भी स्कूलो के दबाव में आकर फीस एक्ट 2016 को लागू नही करवा पा रही है और निजी स्कूलों को संरक्षण दे रही है। फीस एक्ट के अनुसार राज्य सरकार को डिस्ट्रिक लेवल पर अभिभावकों की शिकायतों को सुनने के लिए डीएफआरसी का गठन करना है किंतु 3 बार मुख्यमंत्री, शिक्षा मंत्री, शिक्षा निदेशक को पत्र लिखने के बावजूद आजतक डीएफआरसी का गठन राज्य सरकार द्वारा नही करवाया गया। राज्य सरकार के इस रवैये से उनकी मंशा पर सवाल खड़े होते है। संयुक्त अभिभावक संघ को लगता है कि राज्य सरकार प्रदेश के 2 करोड़ अभिभावकों का साथ ना देकर 55 हजार स्कूल माफियाओ का संरक्षण कर रही है।