उपदेश नही देकर स्वयं के राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी का कानून बनाये – रामपाल जाट

 News from - Gopal Saini (किसान महापंचायत)

जयपुर, तेलंगाना (कृषि उपज एवं पशुपालन) मंडी अधिनियम 1966, पंजाब कृषि उपज मंडी 1961 एवं दिल्ली कृषि उपज मंडी (विनियमन) अधिनियम 1998, अधिनियमो में संशोधन लाकर उपजो को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामो में क्रय-विक्रय को रोका जा सकता है. यह भी ख़ास है की  इन अधिनियमों को राष्ट्रपति का अनुमोदन प्राप्त है. 

उपजो की खरीद न्यूनतम समर्थन मूल्य से आरम्भ की जा सकती है . इस हेतु से वर्ष 2000 से केंद्र एवं राज्यों ने विचार विमर्श के उपरांत आदर्श कृषि उपज एवं पशु पालन (उन्नयन एवं सुविधा) मंडी अधिनियम 2017 तैयार किया था, जो वर्ष 2018 में सभी राज्यों को प्राप्त हो गया I लगभग 4 वर्ष व्यतीत होने के बाद भी इन राज्यों ने इस दिशा में सार्थक पहल नही की . इन राज्यों द्वारा पहल की जाती तो घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्राप्ति सुनिश्चित हो जाती. संबंध में 6 माह पूर्व से देश के किसानो की और से किसान महापंचायत द्वारा समस्त राज्यों के साथ इन तीन राज्यों को भी ज्ञापन भेजकर आग्रह किया जा रहा है.

कल पंजाब में किसान आन्दोलन में  शहीदो के आश्रितों को वितीय सहायता प्रदान करने के कार्यक्रम में इन तीनो राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भागीदारी की,  इसी कार्यक्रम में तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिये कानून बनाने हेतु किसानो को पुन: आन्दोलन आरंभ कर केंद्र सरकार को उखाड़ फेकने का आवाहन किया जो देश के समाचार समूहों में प्रकाशित हुआ.

कृषि एवं किसान कल्याण से सम्बंधित कानून बनाने के लिये भारतीय सविधान ने राज्यों को ही अधिकार सौपा है. तीनो मुख्यमंत्रियों द्वारा अपने अपने राज्यों में गुड़ जैसा न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी का कानून बना कर किसानो को उनके उपजो के दाम दिलाने की घोषणा की जाती तो देश के किसानो में प्रसन्नता की लहर के साथ अच्छा सन्देश जाता किन्तु यहाँ तो “पर उपदेश कुशल बहुतेरे “ के अनुसार ही गुड़ नही देकर गुड़ जैसे वक्तव्य दिये गये.

किसानो को ठगने के लिये इस प्रकार के छलावे स्वतंत्रता के पूर्व से चालू है , एसी ठगी से सावधान करने के लिये लगभग 90 वर्ष पूर्व पंजाब के कृषि एवं राजस्व मंत्री रहे, सर छोटू राम ने उद्घोष किया था “भोले किसान मेरी दो बात मान ले, बोलना ले सीख और दुश्मन पहचान ले”. इसी प्रेरणा से देश के किसानो की और से तीनो मुख्यमंत्रियों से अपने अपने राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने का आग्रह है, अभी तो  इनके व्यवहार से “मंतर (मंत्र) मेरा – बाम्बू में हाथ तेरा “ की लोकउक्ति चरितार्थ हो रही  है.

  इसी का उदाहरण है कि “पश्चिमी बंगाल कृषि उपज मंडी  (विनियमन) अधिनियम 1972 “ विधमान होते हुए भी, वहा के किसानो को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य 1940  रूपए प्रति क्विंटल प्राप्त नही हो रहे वरन एक क्विंटल पर 1000 रूपए तक का घाटा उठा कर अपना धान बेचना पड़ रहा है. वहा की सरकार समुचित संशोधन कर किसानो के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित कर सकती है किन्तु तीसरा कार्यकाल आरम्भ’ होने के उपरांत भी किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य से वंचित है.

राजनीतिक दल एवं उनके नेताओ को किसानो का राज बदलने के लिये उपयोग करने की नीति छोड़ कर अपने राज्यों में किसानो को न्यूनतम समर्थन मूल्य देने का कानून बना कर अन्य राज्यों एवं केंद्र की सरकार के समक्ष उदाहरण बनकर किसानो की और से संघर्ष करने का विश्वास दिलाने की दिशा में चलना चाहिए, इससे उनकी चाहत के अनुसार राज बदलने की सम्भावना बलवती होगी. परिणामत: राजनितिक दल एवं उनके नेता किसानो को पिछलग्गू या राज बदलने का उपकरण मानने की भूल को सुधार सकेंगे.