News from - Abhishek Jain Bittu
जयपुर। शिक्षा को लेकर किताबों, यूनिफॉर्म सहित विभिन्न स्टडी मटेरियल पर अभिभावकों का मोटा पैसा खर्च होता है, जिसको लेकर प्रदेशभर बहुत सारे ऐसे स्कूल है जो अभिभावकों पर अपनी मनमानी करते है और उन्हें खुद या अपने किसी खास विक्रेता से किताबें, यूनिफॉर्म और अन्य स्टडी मटेरियल खरीदने के लिए बाध्य करते है जिससे वह अपना कमीशन बना सके। इसको लेकर संयुक्त अभिभावक संघ ने आपत्ति उठाई है और राज्य सरकार से मांग की है कि वह किताबों, यूनिफॉर्म और अन्य स्टडी मटेरियल पर मनमानी करने वाले निजी स्कूलों को आदेश जारी कर पांबद करे।
संयुक्त अभिभावक संघ प्रदेश अध्यक्ष अरविंद अग्रवाल ने बताया कि स्कूलों में नया सेशन शुरू हो चुका है हर वर्ष की भांति इस वर्ष भी बहुत सारे स्कूलों ने अपना कोर्स चेंज कर दिया और कई स्कूलों ने तो किताबें ही चेंज कर अभिभावकों पर नई किताबों को खरीदने का दबाव बना रहे है। केवल यही नही स्कूलों के द्वारा अभिभावकों को स्कूल कैम्पस में बनी दुकाने या खास विक्रेता से ही खरीदने का दबाव बना रहे है जो पूरी तरह से गैर कानूनी है जिस पर राज्य सरकार और प्रशासन को सख्त एक्शन लेकर स्कूलों में चल रही ऐसी गतिविधियों पर लगाम लगानी चाहिए, स्कूलों को पाबंद करना चाहिए, आदेश नही मानने वाले स्कूलों पर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए।
किताबें, यूनिफॉर्म व अन्य स्टडी मटेरियल को लेकर बनाये नियम
प्रदेश विधि मामलात मंत्री एडवोकेट अमित छंगाणी ने कहा कि राज्य सरकार निजी स्कूलों की मनमानियों को रोकने के लिए नियम तय कर स्कूलों को पाबंद करे और अभिभावकों को राहत प्रदान करे। एनसीआरटी की किताबों को प्रत्येक स्कूल में लागू करें, जिससे अभिभावक अपनी सुविधा अनुसार कही से भी किताबें खरीद सके, स्कूल ड्रेस से स्कूल के लोगों की अनिवार्यता को खत्म किया जाए जिससे अभिभावक कही से ड्रेस खरीद सके या सिलाई करवा सके। इसी तरह अन्य स्टडी मटेरियल है जो अभिभावक अपनी सुविधा अनुसार कही से भी खरीद सके।
राजधानी जयपुर के सी-स्किम स्थित सेंट जेवियर्स स्कूल अपने कैम्पस से मनमाने दामों पर यूनिफॉर्म बेचते है और खुद के कैम्पस से ही किताबें बेच रहे है इसके अतिरिक्त शहर ने एकमात्र शॉप है जो सेंट जेवियर्स स्कूल की किताबें बेच रहे है वह भी अपनी मोनोपॉली कर किताबें बेच रहे है किताबों में हर साल 1 हजार रु की बढ़ोतरी की जाती है और फिर अगले साल उनमें से अधिकतर किताबों का कोर्स चेंज कर दिया जाता है जिसके बाद वह किताबें किसी के काम की नही होती, नई खरीदते है तो 400 से 500 रु की होती है और पढ़ाई होने के बाद रद्दी में 20 से 25 रु किलो के दाम पर बेची जा रही है। अगर स्कूलो में एनसीआरटी के कोर्स को लागू किया जाता है तो ना केवल अभिभावकों को फायदा होगा बल्कि ऐसा करने से पर्यावरण को सुरक्षित रखने की भी बहुत बड़ी बचत होगी।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश को आये 1 साल हो गया किन्तु आज तक आदेश की पालना क्यो नही करवा रही है राज्य सरकार
प्रदेश उपाध्यक्ष मनोज शर्मा ने कहा कि पिछले साल निजी स्कूलों की फीस मसले को लेकर 03 मई 2021 को सुप्रीम कोर्ट का आदेश आया था, उस आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने फीस एक्ट 2016 को सही मानते हुए उसके अनुसार निर्धारित फीस का 15 % छूट देने की बात कही थी, किन्तु स्कूलों ने 15 % छूट तो दे दी किन्तु ना फीस एक्ट 2016 लागू किया और ना उसके अनुसार निर्धारित फीस की जानकारी।
इसको लेकर संयुक्त अभिभावक संघ ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखे, शिक्षा मंत्री से मुलाकात की, शिक्षा अधिकारी से मुलाकात की यही नही शिक्षा निदेशक, संयुक्त शिक्षा निदेशक तक को पत्र लिखे लेकिन कही भी कोई सुनवाई नही हुई। अब संयुक्त अभिभावक संघ राज्य सरकार से सवाल करता है कि जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान ही नही तो फिर क्यों सुप्रीम कोर्ट तक केस फाइल किया जाता है क्यो जनता और अभिभावकों को कानून की दुहाई दी जाती है।