रबी फसलो में उर्वरको के संकट के लिये सरकारों की अदूरदर्शिता एवं संवेदनहीनता उत्तरदायी – रामपाल जाट (राष्ट्रीय अध्यक्ष – किसान महापंचायत)

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किसान की खुशहाली के बिना आजादी अधूरी है, खुशहाली के दो आयाम ऋण मुक्ति और पूरे दाम

     यूरिया की 9 लाख मैट्रिक टन की मांग की तुलना में 4.65 लाख मैट्रिक टन एवं 3.20 लाख मैट्रिक टन की तुलना में 2.15 लाख मैट्रिक टन डीएपी प्राप्त हुआ. यानि 4.35 लाख मैट्रिक टन यूरिया एवं 1.05 लाख मैट्रिक टन डीएपी की तो पूर्ति ही नही हुई। 

जिसे निम्न सारणी में दर्शाया गया है:-

रबी 2022 में उर्वरक आपूर्ति 

 (13.11.2022 तक)

                यूरिया            (मात्रा लाख मैट्रिक टन में)

माह         स्वीकृत मांग          आपूर्ति               शेष

अक्टूबर       4.50                  2.89                 1.61

नवम्बर       4.50                  1.76                 2.74    

योग             9.00                   4.65               4.35

 (13.11.2022 तक)

              डीएपी         (मात्रा लाख मैट्रिक`टन में)

माह           स्वीकृत मांग      आपूर्ति        शेष

अक्टूबर        2.00               1.65          0.35

नवम्बर        1.20                0.5           0.70    

योग            3.20              2.15           1.05

        अकेला राजस्थान देश के कुल उत्पादन में से सरसों का 48% तक का उत्पादक है. इस वर्ष सितम्बर एवं अक्टूम्बर माह में बरसात के कारण खरीफ की फसले ख़राब हो गई जिनको खेतो से हटा कर सरसों की बुआई कर दी थी. सरसों के अंकुरण के उपरांत कीड़े को नियंत्रण करने के लिए सिंचाई के साथ यूरिया की आवश्यकता हुई. इसे दृष्टिगत रखते हुए दिसंबर माह की मांग की पूर्ति नवम्बर माह में ही करनी चाहिये थी किन्तु अभी तक तो अक्टूबर एवं 13 नवम्बर तक की मांग की पूर्ति नही की गई. 

     सरकारों कीदूरदर्शिता का अभाव एवं संवेदनहीनता के कारण किसानो को उर्वरको के संकट से झुझना ही नही पड़ रहा बल्कि घर का काम छोड कर भूखे प्यासे रह कर लाइनों में लगना पड़ रहा है. इतना ही नही तो पुलिस के डंडे-लाठी, धक्का-मुक्की एवं गाली-गलोच से अपमानित होना पड़ रहा है. यह तो तब है जब उर्वरक देने वाली केंद्र सरकार में राजस्थान से शत प्रतिशत सांसद लोकसभा में राजस्थान की जनता ने निर्वाचित करके भेजे हैं। 

     इसी प्रकार राजस्थान में सरकार बनाने के लिए एक दल को बहुमत दिया है. किसानों कि पीड़ा उन दोनों सत्तारूढ़ दलों को ही दिखाई नहीं दे रही है, जबकि किसानों को पुलिस की लाठी-गालियां एवं धक्का-मुक्की से बचाने के लिए यूरिया को नीम लेपित बनाकर उसकी सहज उपलब्धता के लिए केंद्र सरकार की और से ढोल पीटे जा रहे हैं. दूसरी ओर किसानों के कारण ही बनी राज्य सरकार भी किसानों को यूरिया एवं डीएपी दिलाने के लिए प्रभावी पैरवी नहीं कर रही है. प्रतीत होता है कि दोनों राजनैतिक दलों का इस और ध्यान ही नहीं है. आखिर किसान जाए तो जाए कहां ?

     किसानों को अपनी सुख-सुविधाओं के लिए उर्वरकों की आवश्यकता नहीं है बल्कि यह देश के लिए उत्पादन से जुड़ा विषय है। डीएपी की उपलब्धता नही होने से जहाँ सरसों की बुआई विपरीत रूप से प्रभावित हुई. यही स्थिती अब गेहू एवं चने के लिए किसानो को भुगतनी पड़ रही है तथा सिंचाई के समय यूरिया की कमी के कारण इन उपजो में भी भुगतनी पड़ेगी।