News from - गोपाल सैनी
किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट की केंद्रीय बजट पर प्रतिक्रिया
जयपुर। किसानो की खुशहाली के बिना आजादी अधूरी और खुशहाली के लिए खेत को पानी एवं फसल को दाम की आवश्यकता है। दोनों की चर्चा इस बजट में नहीं है। खेत को पानी के लिए सिंचाई योजनाओं के संबंध में सार्थक चर्चा नहीं यथा - राजस्थान में पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना एवं बारां जिले की परवन बहुउद्देशीय सिंचाई परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने का उल्लेख नहीं है।
वही 1994 में यमुना के पानी के समझौते के बारे में तथा जयपुर, सीकर एवं नागौर जैसे जिलों के लिए यमुना-साबरमती लिंक परियोजना तथा अन्य कोई परियोजना यमुना का पानी इन जिलों में पहुंचाने के लिए भी कोई प्रावधान नहीं है। इसी प्रकार फसल के दाम के लिए भारत सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी के लिए कानून बनाने के संबंध में देश के किसानों को निराशा हाथ लगी है। कृषि में स्वावलंबन ग्रामों में स्वायत्तता की दिशा वाला नहीं है यह बजट।इसी प्रकार कृषि में प्रयुक्त होने वाले डीजल, बिजली, खाद, कीटनाशक जैसे आदान निश्चित समय पर उचित मूल्य पर उपलब्ध कराने का कोई चित्र बजट में नहीं है। कृषि प्रधान भारत के बजट में कृषि, किसान एवं गांव केंद्र बिंदु होने चाहिए, वहां ये आसपास में दिखाई देते बल्कि 5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था की दिशा में यह बजट पूंजीपतियों को अधिक पूंजीपति बनाने वाला है. वही अधिकतम लोगों की जेब में पैसा आवे इस विषय का इस बजट में कोई चिंतन नहीं है।
अर्थशास्त्र के सिद्धांत के अनुसार विकास के चक्र को गतिमान करने के लिए अधिकतम उपभोक्ताओं की जेब में पैसा आना चाहिए। यह पैसा जब बाजार में आता है तो मांग बढ़ती है। उससे नए-नए धंधे चालू होते है फिर मांग बढ़ती है । मांग और आपूर्ति का चक्र अर्थव्यवस्था को गतिमान करने के लिए किसानों की जेब में पैसा दिए जाने की इस बजट में उपेक्षा की गयी है। फिर भी इस बजट को गाँव-गरीब-किसान को समर्पित बताया जाना हास्यास्पद है।
कृषि में स्वावलंबन तथा गांव में स्वायत्तता की दिशा वाला यह बजट नहीं है। न ही यह बजट ऋण मुक्त किसान का उद्घोष पूरा करने वाला है। जबकि केंद्र में सत्तारूढ़ दल ने ही ऋण मुक्त किसान बनाने के लिए लोकसभा चुनाव 2009 के घोषणा पत्र में उल्लेख किया था। यदि वे इसकी चिंता करते तो देश में 52% किसान परिवार ऋणों में डूबे नहीं रहते। किसानो को उनकी उपजों के दाम नहीं मिलने से उनकी ऋण चुकाने की क्षमता भी घटती जा रही है ।
केंद्र सरकार ने ही अपने बजट 2016-17 में घोषणा की थी कि “वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी होगी”। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन के अनुसार वर्ष 2013 में किसान परिवारों आय 6,426 रुपये थी, वर्ष 2016 में यह लगभग 8000 रुपये प्रति किसान परिवार हो गयी। यदि उसका दुगुना करें और इसमें मुद्रास्फीति को भी जोड़ें तो यह राशि 20000 रुपये प्रति किसान परिवार होनी चाहिए। जबकि अभी यह आय लगभग 11000 रूपये प्रति परिवार ही है।