20 मार्च 2023 से आन्दोलन की पूर्व सूचना हेतु

News from - Kisan Mahapanchayat.

किसानो की, किसानो के लिए, किसानो के द्वारा, किसान महापंचायत

किसान की खुशहाली के बिना आजादी अधूरी है

खुशहाली के दो आयाम – ऋण मुक्ति और पूरे दाम

     जयपुर। किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने मुख्यमंत्री, राजस्थान सरकार अशोक गहलोत को  “खेत को पानी - फसल को दाम” के लिए आयोजित पदयात्राओ में उभरी समस्याओ के समाधान हेतु, प्रस्ताव – 11 मार्च 2023 को पारित, 20 मार्च 2023 से आन्दोलन की पूर्व सूचना हेतु ज्ञापन प्रदर्शित किया. ज्ञापन प्रस्तुत कर विनम्र प्रार्थना है की सार्थक एवं समुचित कार्यवाही का आदेश प्रदान किया जावे।

1. यह कि उक्त संदर्भित में बैठक में किसानो द्वारा सर्वसम्मति से पारित प्रस्ताव के आधार पर  ज्ञापन निम्न प्रकार प्रस्तुत है :- 

     सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5450 रुपये प्रति क्विंटल होते हुए भी, किसानों को अपनी सरसों बाजार में 4500 रुपये प्रति क्विंटल तक बेचनी पड़ रही है, यानी एक क्विंटल पर 950 रुपये का घाटा उठाना पड़ रहा है । सरसों मंडियों में पहुंच चुकी है तब भी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की अभी तक जानकारी नहीं है । इसी प्रकार 15 दिन बाद से चना भी मंडियों में आने का क्रम आरंभ हो जाएगा । उसके दाम भी न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम रहने की सम्भावना है किंतु सरकार में किसानों की चिंता दिखाई नहीं दे रही है । 

     जबकि संसद में सरकार द्वारा निरंतर लिखित में वचन दिया जा रहा है कि किसी भी किसान को उसकी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में बेचने के लिए विवश नहीं होना पड़ेगा । दूसरी और  सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को गारंटीड मूल्य बताते थकती नहीं है । तब भी उसकी पालना में सार्थक कार्यवाही करना सरकार के लिए दूर की कौड़ी बनी हुई है । ‘फसल को पूरे दाम’ की यह स्थिति दयनीय है । 

     राजस्थान कृषि उपज मंडी अधिनियम 1961 में संशोधन के द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीलामी बोली आरम्भ की जा सकती है । राज्य सरकार द्वारा भी किसानो की अनदेखी की जा रही हैं जबकि पिछले तीन वर्षों से किसान राज्य सरकार से निरंतर अनुनय विनय कर रहे हैं । केंद्र सरकार ने आदर्श कृषि एवं पशुपालन (सुविधा एवं संवर्धन) अधिनियम 2017 का आदर्श प्रारूप तैयार कर सभी राज्य सरकारों को भेज कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ ली है । किसानों के प्रति संवेदनशीलता नहीं रखने के कारण ही नकारात्मकता बनी हुई है ।

यहीं स्थिती ‘खेत को पानी’ के मुद्दे की है । जहां पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना एवं परवन बहुद्देशीय सिंचाई परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने का प्रस्ताव प्रेषित करने के उपरांत भी केंद्र सरकार उसे पूरा नहीं कर रही है बल्कि पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को तो अटकाने-लटकाने एवं भटकाने का काम कर रही है । यही स्थिति यमुना जल की है जिसमें 28 वर्ष पूर्व हुए समझौते की पालना अभी तक लंबित है । यमुना नदी का पानी गढ़टकनेट पर लाकर जयपुर, सीकर एवं नागौर जैसे जिलों में पानी लाने के संबंध में तो सरकार ने चर्चा ही आरंभ नहीं की है ।

इसी प्रकार प्रकृति की मार के कारण नष्ट हुई फसलों की भरपाई के लिए राज्य एवं केंद्र दोनों ही सरकारें गंभीर दिखाई नहीं दे रही है । 

किसानों की पीड़ा को भी सरकार सुनने को तैयार नहीं है । इसी का उदाहरण है कि पांच मार्गो से पांच दिवसीय पदयात्रा करते हुए 28 फरवरी को शहीद स्मारक पर पहुंचने के उपरांत किसानों की ओर से मुख्यमंत्री से मिलने की इच्छा प्रकट की गई थी और अपेक्षित कार्यवाही के लिए किसानों द्वारा सात दिन का समय दिया गया था ।

     वह अवधि समाप्त होने के उपरांत 10 मार्च को पुन: मुख्यमंत्री को पत्र प्रेषित कर समय प्रदान करने के लिए विनती की गई किंतु उनके कार्यालय की ओर से प्रतिउत्तर के रूप में किसी प्रकार की भी सूचना प्राप्त नही हुई । सरकार ने किसानों की व्यथा सुनना बंद कर दिया, ऐसा संदेश सरकार के द्वारा देना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं है। 

अतः आज इस प्रस्ताव के माध्यम से पुन: अनुरोध किया गया है की किसानों की व्यथा सुनने का समय सुनिश्चित किया जाकर सूचना प्रेषित की जावे । अन्यथा विधानसभा का यह सत्र चलने तक राजस्थान के किसानों के प्रतिनिधियो को आगामी 20 मार्च से शहीद स्मारक पर धरना आरम्भ करने को विवश होना पड़ेगा ।

आवश्यकता होने पट विधानसभा का घेराव करने से भी नही चूकेंगे “

2. यह कि आयोजित पदयात्रा में उभरी प्रमुख समस्याए निम्न प्रकार है  :-

क. न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी के लिए राजस्थान कृषि उपज मंडी अधिनियम 1961 के प्रावधान को आज्ञापक बनाते हुए  न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीलामी बोली आरम्भ करना, 

ख. यमुना के पानी को जयपुर, सीकर, नागौर जिलो में पहुचाना एवं राजस्थान व हरियाणा के मध्य हुए 1994 के समझोते की पालना, 

ग. पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को सिंचाई प्रधान बनाते हुए सम्पुर्ण लागत का बजट में आवंटन कर 13 जिले के सभी बाँधो एवं नदियों को जोड़ना ।

घ. परवन बहुउदेशीय सिंचाई परियोजना एवं पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना को ‘राष्ट्रीय परियोजना’ घोषित कराने के लिये विधानसभा में संकल्प लाना ।

ड. आपदाओ से नष्ट हुई फसलो के लिए “जितना नुकसान - उतनी भरपाई” के आधार पर सहायता प्रदान करना ।

3. यह कि देशहित में लोक कल्याणकारी राज्य का उपरोक्त समस्याओ के समाधान का पवित्र धर्म है । ऐसे मुद्दों के लिए किसानो को कमाई छोड़ कर लड़ाई करने को बाध्य होने की स्थिती आना सरकारों पर प्रश्नचिन्ह है ।