भ्रष्टाचार की जाँच के लिये किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट की त्वरित टिपण्णी

 News from - किसान महापंचायत

पूर्व मुख्यमंत्री के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार की जाँच के लिये एक दिन के अनशन को समाचार पत्रों ने प्रमुख समाचार के रूप में प्रकाशित किया है। भ्रष्टाचार को तो सभी मिटाना चाहते हैं किंतु अभी तक तो यह मिटने का नाम नहीं ले रहा है । तो भी सत्ता के सोपान के रूप में अवश्य  इसका उपयोग हो रहा है । दूसरी ओर मूल मुद्दों से ध्यान हटाने का भी यह कारगर हथियार/उपकरण बना हुआ है । 

     बोफ़ोर्स जैसे अब तक के सभी चर्चित भ्रष्टाचार के प्रकरणों में ‘खोदा पहाड़ निकली नही चूहिया’ के कारण परिणाम ढाक के तीन पात जैसे ही रहे हैं। अनशन का नेतृत्व करने वाले की अध्यक्षता में वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव हेतु तैयार किए गए ‘जन घोषणा पत्र’ को  जन के विश्वास और दल के संकल्प का साक्षी होने का उल्लेख है। इतना ही नहीं उसके प्राक्कथन में राजस्थान प्रदेश कांग्रेस के हमेशा से राजस्थान की जनता के प्रति जवाबदेही की भी चर्चा है। 

     इसके उपरांत भी स्थितियां जस की तस है, उनमें कोई सारवान परिवर्तन अभी तक नहीं आया है। यह स्थिति तो तब है जब इस घोषणापत्र को प्रदेश की आर्थिक प्रगति का केंद्र बिंदु निरूपित किया गया है। किसानों को प्रदेश की आर्थिक प्रगति का केंद्र बिंदु मानते हुए सरकार बनने के 10 दिन के अंदर किसानों की कर्ज माफी एवं फसलों के उचित दाम को केवल वादा नहीं अपितु उसे धर्म और कर्तव्य बताया गया है ।

पिछली सरकार द्वारा किसानों द्वारा फसलों के दाम मांगने पर दमन की नीति अपनाने का विरोध करते हुए किसानों को उनकी फसलों के बेहतर मूल्य दिलाने का वचन भी दिया गया है । उसी क्रम में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद की पुख्ता व्यवस्था को भी इस जन घोषणा पत्र का अंश बनाया गया है। इसके उपरांत भी किसानों को उनकी उपजो के दाम दिलाने के संबंध में की गई कोई सार्थक कार्यवाही दिखाई नहीं देती है। 

     प्रकृति की मार से शेष बची उपजो को उचित मूल्य तो मिलना तो दूर की कोडी है, वे तो सरकारों द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी वंचित है। सरसों में एक वर्ष में एक क्विंटल पर 3000 रुपये की गिरावट आना अनहोनी घटना होते हुए भी किसानों के दर्द को साझा करने के लिए वक्तव्य भी नहीं दिया जाए इसे वचन निभाना तो नहीं कह सकते बल्कि वायदा खिलाफी से अवश्य संबोधित कर सकते हैं। 

     निंदा आधारित राजनीति के आधार पर सत्ता प्राप्ति के लिए किए गए प्रयासों को छिपाने के लिए ही भ्रष्टाचार की जांच के विषय को प्रभावी ढंग से रखा जा रहा है। इस भ्रष्टाचार में भी व्यक्ति विशेष के भ्रष्टाचार को ही इंगित किया गया है जबकि भ्रष्टाचार किसी भी शासक या व्यक्ति का हो, उस में भेदभाव नहीं किया जा सकता है।  

इस सन्दर्भ में कवि दुष्यंत की कविता , “सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं। 

मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए । मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही। 

     हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।” से राजनेता प्रेरणा लेते तो 6 अप्रैल को देश के आठ राज्यों के किसानो द्वारा नई दिल्ली  जंतर मंतर पर  किये गये सरसों -सत्याग्रह से उनके मन पिघलते । प्रक्रति की मार झेल रहे किसानो के आसुओ से वे द्रवित होते तथा कर्ज माफ़ नही होने के कारण समयपूर्व जीवन लीला समाप्त करने वाले किसानो के कारण उनकी आत्मा के अकुलाहट होती । अनशन का विषय किसानो के  दर्द को साँझा करना होता तो पीड़ित किसान भी उनके साथ खड़े होते।

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