पश्चिम बंगाल चला काश्मीर की राह पर

Article from - डॉ.संजय श्रीवास्तव (महू) 

मैं बोलूँगा तो बोलोगे कि बोलता है

     भारत की आजादी के बाद इसके दो महत्वपूर्ण राज्य काश्मीर और पश्चिम बंगाल ऐसे रहे जहाँ राष्ट्रवादी राजनीतिक दल का शासन कभी नहीं रहा। काश्मीर में जितनी भी राजनीतिक दल सत्ता में उनमें बीजेपी को छोड़कर सभी किसी ना किसी तरह अलगाववादी ताकतों को समर्थन देते रहे और वे दल उन्हीं ताकतों के दम पर सत्ता में बने रहे। 

     पश्चिम बंगाल में वही स्थिति रही। पहले तो लंबे समय तक कम्युनिस्ट पार्टी का शासन रहा। उसके बाद तृणमूल कांग्रेस का शासन रहा और ये दोनों पार्टियाँ कभी राष्ट्रवादी नही रही। ये पार्टियाँ कमोबेश बांग्लादेशी घुसपैठियों मुसलमानों के वोटों के दम पर सत्ता पर काबिज रहीं। आज पश्चिम बंगाल में घुसपैठियों मुसलमानों की तादाद तेजी से बढ़ती जा रही है और उनके वोट ही सत्ता की दिशा या दशा तय करने में सक्षम है। इसका नतीजा ये है कि यहाँ की राज्य सरकार तुष्टिकरण के रास्ते पर चलने को मजबूर है। 

     आज बंगाल की स्थिति कमोबेश काश्मीर वाली ही हो चुकी है। यहाँ हिंदुओं को अपने धार्मिक जुलूस निकालने पर प्रशासन से इजाजत नहीं मिलती और अगर मिलती भी है तो राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ये खुद एलान कर देती हैं कि अगर जुलूस निकाला जाएगा तो उसके हिंसक परिणाम होंगें और उसका नतीजा ये होता है कि सरकार के अंदरूनी समर्थन से मुस्लिम बहुल इलाकों में हिंदुओं के जुलूस पर आक्रमण कर दिया जाता है।

     इस तरह के दंगे जो होते हैं। दरअसल सरकार के द्वारा प्रायोजित होते हैं। इसमें सरकार अपनी तुष्टिकरण की नीति द्वारा एक विशेष वर्ग का वोट अपने लिये हाशिल करना चाहती है लेकिन इसका दूरगामी परिणाम होता है।जिस तरह काश्मीर धारा 370 हटने के पूर्व डिस्टर्व रहता था, ठीक उसी तरह पश्चिम बंगाल की स्थिति होने जा रही है। पश्चिम बंगाल में जहाँ भी मुस्लिम आबादी ज्यादा है वहाँ से हिंदुओं का शनैः शनैः पलायन होता जा रहा है। चूँकि ये प्रक्रिया धीरे धीरे हो रही है इसलिए इसके तरफ किसी का ध्यान नही जा रहा है।

     परंतु आने वाले समय में ये वहाँ के हिंदुओं के लिए गले का फ़ांस बनने वाला है। तृणमूल कांग्रेस सीधे तौर पर केंद्र सरकार को चुनौती देती रहती है। केंद्र सरकार के किसी भी लाभकारी योजनाओं का लाभ वहाँ के लोगों को नही लेनी देती है और इसमें किसी ना किसी रूप में अड़ंगा डालते रहती है। पहले साम्यवादी गुंडों का आधिपत्य पश्चिम बंगाल में हुआ करता था। अब वह बदलकर तृणमूल कांग्रेस के पाले में चला गया है। आज वहाँ स्थिति ये है कि अगर आपको एक मकान बनवाना है तो आपको वहाँ के स्थानीय तृणमूल कांग्रेस के गुंडों को प्रोटेक्शन मनी देनी पड़ती है। पूरे प्रदेश में कमोबेश यही स्थिति है।

     केंद्र सरकार को इस मामले में स्वतः संज्ञान लेना चाहिए। दरअसल जबतक स्थिति काबू से बाहर नहीं हो जाती तबतक केंद्र सरकार सोई रहती है चाहे केंद्र में कोई भी सरकार हो। लोकतंत्र के नाम पर राज्यों को राष्ट्र की एकता में बाधा नहीं बनने दिया जा सकता है। इस तरह के राज्यों में केंद्र सरकार की हस्तक्षेप की सीधे गुंजाइश होनी चाहिए। आज बांग्लादेशी घुसपैठियों को पश्चिम बंगाल में सुनियोजित तरीके से बसाया जा रहा है और इन्हीं घुसपैठियों में से कुछ घुसपैठिये देश के विभिन्न हिस्सों में आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त होते जा रहे हैं जो आगे चलकर देश के लिए बहुत खतरनाक साबित होने वाले हैं। 

     देश के बिभिन हिस्सो में होने वाले हिन्दू मुस्लिम दंगों में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इनको दंगा करवाने के लिए विशेष तौर पर बुलाया जाता है। पिछले दस सालों में देश में होने वाले दंगों में इन बांग्लादेशी घुसपैठियों का हाथ जरूर पाया गया है। दिल्ली दंगा में इनका ही हाथ था। एक जमाना वह भी था जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी या बी एस पी के शासनकाल में मुस्लिम दंगाइयों के खिलाफ कोई कार्यवाही नही होती थी लेकिन आज उत्तरप्रदेश में स्थिति बिल्कुल उल्टा हो गया है, अब दंगाई दंगा करने में दस बार सोचते हैं।

     जहाँ जहाँ बीजेपी का शासन है वहाँ दंगा नही हो पाता है अगर होता भी है तो दंगाइयों को उसकी कड़ी सजा भी मिलती है लेकिन ठीक इसके विपरीत अगर कोई गैर बीजेपी राज्य में दंगा होता है तो वहाँ एक विशेष वर्ग के तुष्टिकरण के लिए उनके खिलाफ प्रशासन कोई कार्यवाही नही करती। केवल कार्यवाही के नाम पर लीपा पोती हो जाती है लेकिन आज की परिस्थितियों में सबसे खतरनाक हालात पश्चिम बंगाल है जहाँ खुद ममता बनर्जी के संरक्षण में दंगाई फल फूल रहे हैं। पूरा प्रशासन एक विशेष वर्ग को सुरक्षा प्रदान करके हिंदुओं के खिलाफ दंगा करने के लिए माहौल पैदा करते हैं।

     जब खुद मुख्यमंत्री ये कहे कि हिंदुओं को रामनवमी की जुलूस नही निकालनी चाहिये क्योंकि इससे दंगा हो सकता है। तो आप खुद समझ सकते हैं कि दंगाइयों का हौसला बढ़ेगा कि घटेगा। जब बिहार में बीजेपी सत्ता में थी तो दंगा पर लगाम लगा हुआ था लेकिन आज जबकि वहाँ जद यू के साथ, आर जे डी के शासनकाल में अभी रामनवमी के अवसर पर नालंदा और सासाराम में दंगे हुए, जिसमें बीस से ज्यादा लोगों की जान चली गई। ये सब बानगी है कि कैसे गैर बीजेपी शाषित राज्यों में दंगा आसानी से हो जाता है।

     दरअसल गैर बी जे पी शासनकाल वाले राज्यों में एक विशेष वर्ग को ये पता होता है कि तुष्टिकरण के नीति के कारण उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं होगी और यही होता रहा है। वरना मुख्तार अंसारी या अतीक अहमद जैसे माफिया इस कदर अपना काला साम्राज्य स्थापित करने में सफल रहे। आज उत्तरप्रदेश में सही सरकार है तो वे अपने गुनाहों की सजा पा रहे हैं। जब प्रशासन दुरुस्त हो तो कोई भी अपराधी, कोई अपराध करने में दस बार सोचता है लेकिन जब प्रशासन ही अपराधियों को संरक्षण देने लगे तो अपराधियों का मनोबल बढ़ने लगता है और वे जघन्य से जघन्य अपराध करने से नही चूकते हैं। अब जनता को ये निर्णय करना है कि वे किस तरह के माहौल में जीना चाहते हैं।