News from - राजेश निगम (प्रदेशाध्यक्ष, मध्य प्रदेश, भारतीय पत्रकार सुरक्षा परिषद)
स्वामी विवेकानन्द ने अपनी जाति की व्याख्या कुछ इस प्रकार की है
(लेखक - अंबुज सक्सेना) |
यदि मेरी जाति की गणना छोड़ दी जाये, तो भारत की वर्तमान सभ्यता शेष क्या रहेगा? अकेले बंगाल में ही मेरी जाति में सबसे बड़े कवि, इतिहासवेत्ता, दार्शनिक, लेखक और धर्म प्रचारक हुए हैं। मेरी ही जाति ने वर्तमान समय के सबसे बड़े वैज्ञानिक (जगदीश चन्द्र बसु) से भारतवर्ष को विभूषित किया है।
स्मरण करो एक समय था जब आधे से अधिक भारत पर कायस्थों का शासन था। भारत में देवपाल गौड़ कायस्थ राजवंश तथा मध्य भारत में सातवाहन कायस्थ राजवंश सत्ता में रहे हैं। अतः हम सब उन राजवंशों की संतानें हैं। हम केवल बाबू बनने के लिये नहीं, अपितु हिन्दुस्तान पर प्रेम, ज्ञान और शौर्य से परिपूर्ण उस हिन्दू संस्कृति की स्थापना के लिये पैदा हुए हैं।
लेकिन हमेशा ध्यान रखिए कायस्थ कभी भी अपना बखान नहीं करता है, कभी अपनी तारीफों के पुल नहीं बांधते हमेशा अपने मूल धर्म और कर्म का (शिक्षा कलम) अनुसरण करता है. कायस्थ समाज ने एक समय आधे विश्व पर राज किया था और इसके पूरे सबूत दे सकता हूँ, लेकिन कायस्थ समाज के लोग ये सब की चर्चा नहीं करते हैं क्योंकि हम कर्म में विश्वास करते हैं बखान करने मे नही.
अन्य समाज जाति के लोग बखान करते हैं कि ये तीर मारा वो तीर मारा.. अरे तीर मार कर क्या भारत पर कोई एहसान किया था.... देश के प्रति काम करना कोई एहसान नहीं होता है... फिर क्यों एहसान दिखाते हो... ये तीर मारना नहीं हुआ ये तो स्वार्थ के अन्तर्गत आता है.. देश पर अपना एहसान थोप रहे हो.... एहसान मत दिखाओ देश के लिए काम करते रहो...
कायस्थ समाज कभी भी उग्र प्रदर्शन नहीं करता है, देश की संपति को नुकसान नहीं पहुंचाता है. जब भी भारत पर कोई विपत्ति आती है, जब भारत को जरूरत होती है कायस्थ समाज अग्रणी भूमिका निभाता है.. तीन चार उदाहरण दे रहा हु. विवेकानंद जी ने सनातन को नए आयाम दिए। सुभास चंद्र बोस जी अंग्रेजो को भगा दिया। शास्त्री जी ने पाकिस्तान मे घुस कर मारा।
शंकर अबाजी भिसे जिनके 200 आविष्कार और 40 पेटेंट हासिल भारतीय वैज्ञानिक है और भी बहुत नाम है लेकिन हम अपना काम करने मे विश्वास करते हैं, बखान करने मे नही। हमेशा देश को समर्पित रहते हैं इसलिए मुझे और सभी कायस्थो को अपने कुल, अपने वंश, अपनी जाति पर गर्व करते हैं..
इसकान मंदिर के द्वारा विश्व मे कृष्ण की भक्ति हो या आध्यात्मिक और शिक्षा मे महेश योगी आदि... कायस्थों की देन है। अन्य समाज के लोग कहते हैं कि हमारी संख्या इतनी है.. हमारी भागेदारी ये होनी चाहिए, हमको ये मिलना चाहिए लेकिन कायस्थ कभी नहीं कहते कि हमारे को ये दो। हमारी भागेदारी ये होनी चाहिए, हम और हमारा इतिहास देश को समर्पित होने का है। हम कहते हैं कि देश को हम लोग देगे ......
अन्य समाज के लोग मांग करते हैं कि हमको अमुक पुरूस्कार (अवार्ड) दो, हम लोगों किसी अवार्ड आदि के भूखे नहीं होते हैं न ही कभी मांग करते हैं... उदाहरण दे रहा हु सुभाष चंद्र बोस जी के परिवार ने भारत रत्न ठुकरा दिया.... और कहा था कि हम देश के लिए समर्पित है किसी पुरूस्कार के लिए नहीं.....
अगर बात करें आधुनिक की, तब संविधान निर्माता है कायस्थ समाज के लोग ....संविधान के प्रत्येक पृष्ठ पर मौजूद है हमारे समाज के प्रेम रायजादा जी के हस्ताक्षर, डॉ राजेंद्र प्रसाद जी है संविधान निर्माता.. .. लेकिन हम लोग ढिंढोरा नहीं पीटते है.. अन्य लोगों की तरह कि संविधान हमने बनाया है.... क्योंकि हम ढिंढोरा पीटने के बजाय कर्म करने मे विश्वास करते हैं..... आज भी गद्दारी मे जयचंद का नाम आता है, किसी कायस्थ का नाम गद्दारी मे प्रसिद्ध नहीं है। इसी से समझा जा सकता है कि कौन क्या है।
हमारे समाज में स्नातक तक की पढ़ाई को कुछ नहीं समझा जाता है.. कमसे कम परास्नातक होना चाहिए तब मानते हैं कि पढ़ाई की है.... कायस्थ जाति नहीं संस्कृति है। एक सभ्यता है, एक संस्कार है, एक ओंकार है । कायस्थ पूरे देश के 21 प्रांतों में निवास करते हैं। प्रारंभिक काल से कायस्थ कलम और तलवार दोनों से धनी रहे हैं।
हमारे समाज में दो वाक्य बहुत प्रसिद्ध है
पहला कायस्थ का बच्चा पढ़ा भला या
दूसरा वाक्य है कायस्थ वक़्त बदलता है रक्त नहीं!