News from - Govind Singh
पत्रकारों में है आक्रोश
जयपुर। एक तरफ तो किसी भी कार्यक्रम में कई मर्तबा यह देखने सुनने में आता है कि नेता या मंत्री अपने भाषणों में पत्रकारों व मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बताकर पत्रकारों के प्रति अपना स्नेह प्रकट करके यह जताते हैं कि एक पत्रकार समाज के लिए सरकार के तीनों अंगों की तरह ही महत्वपूर्ण एवं अभिन्न अंग है। लेकिन जब लोकतंत्र के चौथे स्तंभ रूपी अंग यानि मीडिया या पत्रकारो के साथ ही किसी निजी मॉल में ठेके पर लगाये पार्किंग स्टाफ या ठेकेदार द्वारा बदसलूकी कर पत्रकारों की छवि धूमिल की जाए तो फिर नेता या मंत्री द्वारा उनके भाषणों में पत्रकारों को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ बताना सरासर बेईमानी है।
उस समय पार्किंग के एग्जिट गेट पर मौजूद स्टाफ ने उनको टोकन लेने के लिए नहीं टोका जबकि वह अपनी बाइक खड़ी करके मूवी देखने हाल में चले गए। मूवी देखने के बाद सभी पत्रकार लगभग शाम 7 बजे वापस अपने अपने वाहन के पास आए। इस दौरान यह देखने में आया कि पत्रकार गोविंद की बाइक पर जंजीर से ताला लगाया हुआ है। इस पर दोनों पत्रकारों ने पार्किंग एग्जिट गेट पर तैनात स्टाफ से ताला लगाने का कारण पूछा तो उन स्टाफ में से एक विनोद गुर्जर नाम के व्यक्ति ने बोला कि मैं यहां का ठेकेदार हूं और मैंने ही बाइक पर ताला लगवाया है तो अब बताओ क्या करना है।
पत्रकारों ने उनसे यह पूछा कि आपने हमारी गाड़ी पर बिना किसी कारण ताला क्यों लगाया तो ठेकेदार विनोद गुर्जर ने यह बोला कि आपने एग्जिट गेट से बाइक एंट्री करके पार्किंग की है इसलिए गाड़ी पर ताला लगा दिया है और अब गाड़ी की सभी आईडी दिखाने और टोकन लेने के बाद ही गाड़ी में लगा ताला खोलूंगा। तब पत्रकारों ने उनको कहा कि हम लेट हो रहे थे और जल्दबाजी के कारण हमने गाड़ी यहां से एंट्री करके लगा दी।
उन्होंने बताया कि हम पत्रकार हैं और पत्रकारों के लिए रखे गए एक मूवी शो देखने के लिए आए हुए थे इसलिए जल्दबाजी में ऐसा कर दिया तो अब आप इसको ताले को खोले और आपको जो टोकन मनी है वह लेलो और हमें यहाँ से जाने दो। इस पर ठेकेदार विनोद गुर्जर ने यह कहा कि यह गाड़ी चोरी की है और आप लोग फर्जी हो और आप यह गाड़ी आपकी नहीं इसलिए गाड़ी की पूरी आईडी आरसी, लाइसेंस और आप दोनों का आधार कार्ड देखेंगे तब उसके बाद ही गाड़ी को छोड़ेंगे। इस पर पत्रकारों ने अपने संस्थान के प्रेस आईडी कार्ड दिखाते हुए अपना परिचय दिया तो ठेकेदार ने प्रेस आईडी कार्ड को नहीं माना।
इस पर जब दोनों पत्रकारों ने प्रेस क्लब के पदाधिकारियो से फोन पर बात कर समस्या की जानकारी दी तो प्रेस क्लब के पदाधिकारियों ने गेट पर तैनात स्टाफ से फोन पर बात करना चाहा तो विनोद गुर्जर ने फोन पर किसी से भी बात करने से मना कर दिया और पत्रकार को धमका दिया कि आपको जहां जाना है जाओ और जिसको बुलाना उसको बुलाओ और पुलिस को बुलाना है तो बुला लो लेकिन यह गाड़ी अब पूरे कागजात देखे बिना नहीं छोड़ेंगे। आखिरकार लगभग दो घंटे तक परेशान होने के बाद पत्रकारों ने मजबूरन अपनी व गाड़ी की सभी आईडी दिखाई और 20 रुपये पार्किंग चार्ज दिए तब जाकर ठेकेदार ने बाइक में लगाया हुआ ताला खुलवाकर उनको जाने दिया।
अब सवाल यह उठता है कि पत्रकारों के किसी कार्यक्रम में किसी रिपोर्टर की मामूली सी गलती पर एक पार्किंग ठेकेदार द्वारा बाइक को ताला लगाकर रोक लेना और पत्रकारों को धमकाते हुए उनके साथ दुर्व्यव्हार करना आखिर कहां तक जायज है। और तो और अपनी जानकारी देने के बावजूद पार्किंग ठेकेदार पत्रकारों को ही उल्टा धमकाकर यह कहने लगा कि तुमको जो करना है कर लो, जहां जाना है जाओ, हम तो अपने हिसाब से ही ड्यूटी करेंगे। आखिर कहां गया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ जब एक मामूली से ठेकेदार ही पत्रकारों के साथ इस तरह दुर्व्यवहार और बदसलूकी करते रहेंगे तो यह कहना बिल्कुल अनुचित है कि मीडिया लोकतंत्र का चौथा स्तंभ है।