जैसे-जैसे दीपों का उत्सव करीब आता है मन में मिठास सी घुलने लगती है। घर को सजाने के लिए, त्योहार के दिन को कुछ खास बनाने के लिए, शिद्दत से परंपरागत चीजों की खरीदारी हो रही है। घर-आंगन में दीपों की लौ भले सब अपनी रीतियों से जलाएं पर रोशनी अंधेरे को ढक...घरों को उज्ज्वल बनाती है...रिश्तों को प्रगाढ़ करती है।
उत्तराखंडी समाज...यूं तो बरसों से दिल्ली में रहते हुए इसी शहर का समावेश आ गया लेकिन कुछ परंपरागत चीजें हैं जो आज भी पीढ़ियों से चले आ रही रीतियों के साथ मनाई जाती हैं। अलका ममगई बताती हैं कि अब दीपों के इस उत्सव पर यूं तो कई चीजें खास होती हैं मसलन इस दिन हम उड़द की दाल के पकोड़े और पूड़ी जरूर बनाते हैं। और जिन लोगों के यहां दीवाली नहीं होती है उन्हें भी ये दोनों चीज जरूर देते हैं। त्योहार से एक दिन पहले अनाज के पिंड बनाए जाते हैं और सुबह को गाय बैल के सींग में तेल लगाया जाता है। उन्हें धूप-दीप दिखाकर पूजा की जाती है और फूलों की माला पहनाकर अनाज के पिंड खिलाए जाते हैं। भगवान से प्रार्थना की जाती है कि हमारे अनाज भंडार में हमेशा बरक्कत रहे। रात का सबसे खास आकर्षण होता है भैलो खेलने का। हालांकि दिल्ली में इसका चलन कम होता जा रहा है। वहीं अपने प्रदेश में इगास-बग्वाल यानी दीवाली के दिन भैलो खेलने का भी रिवाज है। हां, अब यहां भैलो नहीं लेकिन नृत्य परंपरा के जरिए खुशियां बांटी जाती हैं। भैलो का मतलब एक रस्सी से है, जो पेड़ों की छाल से बनी होती है। बग्वाल के दिन लोग रस्सी के दोनों कोनों में आग लगा देते हैं और फिर रस्सी को घुमाते हुए भैलो खेलते हैं। लोग समूहों में एकत्रित होकर पारंपरिक गीतों पर नृत्य करते हैं।
केले के पत्ते से विशेष सजावट - राम जी की घर वापसी का त्योहार...यानी दीवाली इस पावन दिन हम अपने समस्त परिवार के साथ, जिसमे हमारे साथ काम करने वाले आफिस के कर्मचारी भी होते हैं, सब साथ मिलकर भोजन करते हैं। यही तो इस त्योहार की खासियत है। मराठी समुदाय श्रीगणेश सेवा मंडल के अध्यक्ष महेंद्र लड्डा बताते हैं कि हमारे घर मे विशेष रूप से सजावट होती है। जिसमें केले के पत्ते का जरूर उपयोग किया जाता है। यह पत्ते भगवान विष्णु और लक्ष्मी को अतिप्रिय हैं। और पूजा सिंह लग्न में होती है जो कि अर्ध रात्रि में 12-1 के बीच होता है। लक्ष्मीजी वहां होती हैं, जहां सफाई हो। इसलिए दीवाली वाले दिन हम घर और कार्यालय का कोना-कोना साफ करते हैं। लक्ष्मी पूजन में 16 तरह से स्नान कराया जाता है। जैसे चीनी का स्नान, घी, दही, दूध, सहेड, गन्ने का रस, इत्र, गोल्ड इत्यादि।
लक्ष्मी एवं गणेश की कथा सुनकर करते हैं पूजा -: श्रीवास्तव परिवार आज भी चमक दमक से दूर सादगी भरी दीवाली मनाना पसंद करते हैं। रिमझिम बताती हैं कि दीवाली पर घरों की सफाई होती है। शाम में होने वाली पूजा में हम सिर्फ मिट्टी के दीये ही इस्तेमाल करते हैं। मसलन, मटकी, मिट्टी के दीप, हटरी, बड़े दीये खरीदते हैं। हमारे यहां, गणेश जी के बाद हनुमान जी की पूजा होती है। जो शायद अपने आप में अनोखी है। दीवाली वाले दिन हम लक्ष्मी एवं गणेश की कहानी सुनते हैं। सभी परिवार के सदस्य पूजा वाले स्थान पर बैठ जाते हैं एवं तन्मयता से कहानी खत्म होने तक बैठे रहते है। पूजा के बाद बड़ों का आशीर्वाद लिया जाता है एवं फिर मिठाइयां खाई जाती हैं। लेकिन दीवाली यहीं पूरी नहीं होती है। तड़के सुबह खील, बताशे, फूल लेकर महिलाएं घर के बाहर जाती हैं एवं थोड़ी दूर एक जलते दीपक के साथ रख देती हैं। इसे तड़के सुबह तारों की छांव में रखना होता है।
सूप बजाने की रवायत - दिल्ली में पूर्वाचल के लाखों लोग रहते हैं। अपने घरों से दूर इन्होंने दिल्ली को दिल से अपना लिया है। हां, घर की दीवाली याद आती है लेकिन ये लोग अब यहीं अपनी परंपराओं संग त्योहार मनाना पसंद करते हैं। छठ पूजा आयोजन समिति के अध्यक्ष गोरखपुर निवासी शिवराम पांडेय कहते हैं कि दीवाली पर हम मिट्टी के दीप, मोमबत्ती प्रयोग करते हैं। घर की सफाई के अलावा छोटी दीवाली के दिन हम यम के लिए दीप जलाते हैं। ऐसी मान्यता है कि लक्ष्मी और दरिद्र भाई-बहन है। जो अमावस्या के दिन ही मिलते हैं एवं सुबह ही बिछड़ भी जाते हैं। दीवाली की शाम लक्ष्मी, गणेश की पूजा होती है एवं फिर नजदीकी मंदिर में हम दीपक जलाते हैं। इसके बाद पूड़ी, सब्जी समेत अन्य मिष्ठान खाते हैं। तड़के सुबह सूप को किसी लोहे या लकड़ी से बजाते हुए महिलाएं घर के बाहर जाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि इसे बजाने से घर से दरिद्रता भाग जाती है। यह तड़केसुबह ही किया जाता है।
हर गुजराती के घर बनता है मोहनथाल - दीवाली पर पूड़ी, सब्जी, खीर मिठाई रंगोली बनाते हैं। दीवाली की तैयारियां गुजराती समाज में लगभग 15 दिन पहले शुरू हो जाती है। सभी लोग नए-नए कपड़े खरीदते हैं और घर की साफ-सफाई करते हैं। उसके बाद घर में अपने हाथों से सारी मिठाइयां बनाई जाती हैं। प्रीत विहार निवासी गुजराती वंदना पुरानी बताती हैं चकरी, बेसन सेव, मठिया व अलग-अलग प्रकार के नमकीन बनाते हैं। और सबसे खास मोहनथाल (बेसन की मिठाई), बनाने का रिवाज भी है। यह मिठाई हर गुजराती के घर में बनती है। सभी व्यापारी अपने सारे पुराने हिसाबों को निपटाकर नए की शुरुआत करते हैं। उसके बाद आती है धनतेरस। धनतेरस के दिन हरेक घर में लक्ष्मीपूजन होता है और माताजी को छप्पन भोग लगते हैं। सारे घर के लोग एकत्र होकर मां लक्ष्मी की आराधना करते हैं। मां लक्ष्मी की कृपा हमेशा उन पर बनी रहे, ऐसी कामना करते हैं। दीवाली के साथ ही गुजरातियों के नए साल की शुरुआत हो जाती है। इसलिए इस दिन को बड़े खास तरीके से उल्लास के साथ मनाते हैं।