पिछले साल 24 अगस्त को महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के वकील रिपुदमन सिंह भारद्वाज ने कहा था कि चेहरा पहचानने की नई तकनीक इतनी बेकार है कि कुछ मामलों में ये गुमशुदा व्यक्ति के लिंग को भी नहीं पहचान सकती.
उन्होंने ये बात दिल्ली हाईकोर्ट कोर्ट में एक गुमशुदा लड़की के मामले में चल रही सुनवाई के दौरान कही थी. इस सुनवाई में दिल्ली पुलिस की ज़रिए चेहरा पहचानने की नई तकनीक के इस्तेमाल के नतीजों पर बहस हो रही थी.
अदालत ने दिल्ली पुलिस से ये जानना चाहा कि नई टेक्नॉलॉजी के इस्तेमाल से गुमशुदा बच्चों के चेहरों के मैच होने की संख्या एक प्रतिशत से भी कम क्यों थी. इसके साथ ही अदालत ने पुलिस से ये भी जानना चाहा कि क्या चेहरा पहचानने की इससे बेहतर टेक्नॉलॉजी उपलब्ध है?
इस बात की पुख्ता जानकारी नहीं है कि दिल्ली पुलिस ने टेक्नॉलॉजी को अपग्रेड किया है या नहीं. लेकिन इस टेक्नॉलॉजी का इस्तेमाल हाल ही में हुए दिल्ली दंगों में शामिल लोगों की पहचान करने के लिए किया जा रहा है. इस बात की पुष्टि खुद गृह मंत्री अमित शाह ने 11 मार्च को लोक सभा में की. गृह मंत्री ने कहा कि 1100 लोगों की शिनाख़्त फेशियल रिकग्निशन यानी चेहरे की पहचान करने वाले सॉफ़्टवेयर के ज़रिए की गई है.