दिल्ली हाईकोर्ट ने एम्स को निर्देश दिया है कि दुर्लभ बीमारी 'गौचर' से पीड़ित डेढ़ साल की बच्ची का उसके पिता से एक भी पैसा लिए बगैर इलाज किया जाए। जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह ने अपने आदेश में इस तथ्य का उल्लेख किया है कि दुर्लभ किस्म की बीमारी से पीड़ित व्यक्तियों का इलाज करने के बारे में कोई नीति है। अदालत ने इसके साथ ही ऐसी दुर्लभ बीमारियों से निपटने के लिए सरकार की मौजूदा नीति के बारे में 17 अप्रैल तक हलफनामा दाखिल करने का केन्द्र को निर्देश दिया है।
हाईकोर्ट ने 23 मार्च को अपने आदेश में कहा कि इस बच्ची का इलाज तत्काल शुरू करने के अनुरोध के साथ इस आदेश की कॉपी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के चिकित्सा अधीक्षक और निदेशक को भेजी जाए। हाईकोर्ट गौचर बीमारी से पीड़ित बच्ची के पिता की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिका में बच्ची के इलाज के लिए धन और इस संबंध में उचित निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। याचिका के अनुसार, बच्ची के इलाज के संबंध में सरकार को अनेक प्रतिवेदन दिए गए, लेकिन उसका कोई नतीजा नहीं निकला है।
बच्ची के पिता के वकील ने अदालत से कहा कि इस बीमारी के इलाज पर हर महीने करीब साढ़े तीन लाख रुपये खर्च आता है। अदालत ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि इस बीमारी के इलाज का खर्च उसका परिवार नहीं उठा सकता है। अदालत को बताया गया कि अमेरिका और यूरोपीय यूनियन में 'अनाथ बीमारी' के रूप में 'गौचर' बीमारी का इलाज किया जा चुका है। यह एक आनुवांशिक विकार है। अदालत को यह भी बताया कि केन्द्र सरकार ने 2018 में दुर्लभ बीमारियों के इलाज की नीति तैयार की थी, लेकिन कुछ राज्य सरकारों की आपत्ति के कारण इसे कथित रूप से रद्द कर दिया गया।
दुर्लभ बीमारियों के इलाज की नीति का मसौदा दस्तावेज 13 जनवरी, 2020 को जारी किया गया था। अदालत ने कहा कि यह नीति अभी तक लागू नहीं हुई है। इस तथ्य को देखते हुए ऐसा लगता है कि दुर्लभ बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों और उनके इलाज के बारे में अभी कोई नीति नहीं है।