क्या हम भूल जाएंगे छूने का अहसास?

     नए कोरोना वायरस की महामारी ने हम सभी को ऐसे दौर से गुज़रने पर मजबूर कर दिया है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. लोगों से हंस कर मिलना, हाथ मिलाना, ख़ुशी से एक दूसरे को गले लगाना ज़्यादातर देशों की संस्कृति का हिस्सा है. लेकिन अब सब-कुछ बदल गया है.



     सोशल डिस्टेंसिंग ने हमें छूने के एहसास को भुला देने को मजबूर कर दिया है. एक ही घर में परिवार के लोग भी एक दूसरे से दूरी बना कर बैठते हैं. ग़लती से कोई किसी के नज़दीक आ भी जाए तो ख़ुद को ही अजीब लगने लगता है. हम उसे दूरी बनाने की ताकीद करने लगते हैं. ये सिलसिला सिर्फ़ लॉकडाउन तक ही नहीं रहने वाला है. बल्कि हमें अब इन आदतों के साथ जीना सीखना होगा.


     जिन देशों में कोरोना की रफ़्तार कम हुई है वहां अब लॉकडाउन हटाया जा रहा है. ज़िंदगी फिर से पटरी पर लाने की कोशिश की जा रही है. लेकिन जानकारों का कहना है कि अब पहले जैसा सामान्य जीवन जीना इतना आसान नहीं रह जाएगा. अभी तक लोग घरों में थे. कम से कम लोगों से बात-चीत हो पाती थी, लेकिन जैसे ही हमारी पेशेवर ज़िंदगी दोबारा पटरी पर लौटेगी, लोगों के साथ मिलना जुलना होगा तो संवाद करना सबसे मुश्किल होगा. हो सकता है आपके इशारों का ग़लत मतलब निकाला जाए और रिश्तों में बेवजह दूरी पैदा हो जाए.


     एक रिसर्च बताती है कि ब्रिटेन में सिर्फ़ 7 फ़ीसद लोग ही चाहते हैं कि मौजूदा समय में लॉकडाउन हटाकर फिर से कारोबार शुरु किया जाए. जबकि 70 प्रतिशत लोग इसके ख़िलाफ़ हैं. इसी तरह ऑस्ट्रेलिया और अमरीका में 60 प्रतिशत, कनाडा में 70 फ़ीसद, फ़्रांस और ब्राज़ील में 50 तो चीन के 40 प्रतिशत लोग यही चाहते हैं कि जब तक कोरोना वायरस का प्रकोप पूरी तरह ख़त्म नहीं हो जाता तब तक कारोबार शुरु ना किया जाए. लॉकडाउन में जिस तरह की ज़िंदगी हम सभी जी रहे हैं वो शायद हम में से कोई भी नहीं जीना चाहता. हम सभी को अपने साथ अपने रिश्तों की गर्मी चाहिए.