हिंदू धर्म में सावन का माह बहुत ही पवित्र माना जाता है। यह भगवान शिव का सबसे प्रिय माह है। इसी कारण श्रद्धालु महादेव शंकर को प्रसन्न करने के लिए विधि-विधान से पूजा अर्चना करते हैं। सावन के माह में भगवान को जलाभिषेक के समय बेलपत्र चढ़ाने का विशेष महत्व है। बेलपत्र को संस्कृत में 'बिल्वपत्र' कहा जाता है। यह भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है। शास्त्रों के अनुसार बेलपत्र और जल से भगवान शंकर का मस्तिष्क शीतल रहता है। पूजा में इनका प्रयोग करने से वे बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं। शिव शंकर को बेल पत्र चढ़ाने और इसे तोड़ने का एक तरीका है। जानिए इस नियम के बारे में।
बेलपत्र तोड़ने के नियम
- शास्त्रों के अनुसार चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या , संक्रांति आदि तिथियों के साथ-साथ सोमवार के दिन बेलपत्र नहीं तोड़नी चाहिए। आप चाहे तो क दिन पहले तोड़ कर रख सकते हैं।
- बेलपत्र तोड़ने से पहले और बाद में बेल पत्र के पेड़ को प्रणाम जरूर करना चाहिए।
- कभी भी बेलपत्र को टहनी सहित नहीं तोड़ना चाहिए। इसके बदले आप सिर्फ इसकी पत्तियों को भी तोड़े।
- स्कंद पुराण के अनुसार अगर नया बेल पत्र नहीं मिल सके तो किसी दूसरे के चढ़ाए हुए बेलपत्र को भी धोकर आप चढ़ा सकते हैं। इससे किसी भी तरह का पाप नहीं लगेगा।
अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।
शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि क्वचित्।। (स्कंदपुराण)
- कभी भी बेलपत्र को टहनी सहित नहीं तोड़ना चाहिए। इसके बदले आप सिर्फ इसकी पत्तियों को भी तोड़े।
ऐसे चढ़ाएं शिवशंकर को बेलपत्र
- भगवान शिव की तस्वीर या शिवलिंग में हमेशा उल्टा बेलपत्र रखना चाहिए। यानी चिकना भाग शिवलिंग के ऊपर रहना चाहिए।
- भगवान शिव को ऐसा बेलपत्र अर्पण करें जो बिल्कुल भी कटा फटा न हो।
- शिवलिंग पर दूसरे के द्वारा चढ़ाए गए बेलपत्र का अनादर नहीं करना चाहिए।
- बेलपत्र 3 से लेकर 11 दलों तक के होते हैं। ये जितने अधिक पत्र के हों, उतने ही उत्तम माने जाते हैं।
- कभी भी बेलपत्र को टहनी सहित नहीं तोड़ना चाहिए। इसके बदले आप सिर्फ इसकी पत्तियों को भी तोड़े।