दीक्षार्थी समण सिद्धप्रज्ञ जी का मंगल भावना समारोह

द्वारा - पप्पू लाल कीर (राजसमंद) 


     आज प्रज्ञा विहार प्रांगण में मुनि श्री प्रसन्न कुमार जी मुनि श्री धैर्य कुमार जी के सानिध्य में समण सिद्धप्रज्ञ जी का मंगल भावना समारोह आयोजित किया गया। मुनि श्री प्रसन्न कुमार जी ने फरमाया कि भोग से योग की और भीतर से बाहर की ओर राग से विराग की ओर जाना ही दीक्षा है। तेरापंथ धर्म संघ में आचार्य श्री तुलसी ने एक समण श्रेणी बनाई जो वाहन का प्रयोग कर विदेश में जाकर भी धर्म का प्रचार कर सके।



     समण सिद्धप्रज्ञ जी ने 35 वर्ष तक समण श्रेणी में रहकर 22 देशों की यात्रा कर हजारों लोगों में प्रेक्षा ध्यान की धार्मिक प्रभावना की है। अब अगले वर्ष उज्जैन में आचार्य श्री महाश्रमण जी के हाथों दीक्षित होकर साधु (संत) बनने जा रहे हैं। जैन धर्म में चारित्र दीक्षा लेने जा रहे हैं। मंगल भावना की शुरुआत काकरोली से की है क्योंकि इनको साधु जीवन के लिए प्रेरणा स्त्रोत मुनि श्री संजय कुमार जी व मुनि श्री प्रकाश कुमार जी (दिवेर बंधु त्रय) रहे हैं।


     आज से लगभग 35 वर्ष पूर्व उज्जैन चातुर्मास में तैयार हुए हैं। जैन संत बनना मतलब भोग से त्याग की ओर प्रस्थान करना बाहर की प्रवृत्ति से निवृत्ति की ओर प्रस्थान करना। समण सिद्धप्रज्ञ जी जीवन उत्थान का श्रेष्ठ लक्ष्य प्राप्त करने जा रहे हैं। समण सिद्धप्रज्ञ जी ने बताया कि मेरे जीवन में कभी भी मंगल भावना समारोह नहीं हुआ है। यह पहला अवसर है जब मेरा मंगल भावना समारोह  आयोजित किया जा रहा है।


     मुझे यह सौभाग्य कांकरोली में प्राप्त हुआ है। मंगल भावना प्रेषित करने वालों में तेरापंथी सभा के अध्यक्ष प्रकाश सोनी, मंत्री हिम्मत कोठारी, पूर्व अध्यक्ष चंद्रप्रकाश चौरडिया, महेंद्र कोठारी, सुखलाल बागरेचा, जगजीवन लाल चोरडिया, राकेश टूकलिया, श्रीमती चंदा टूकलिया आदि ने अपनी मंगलभवनाएँ व्यक्त की। समण सिद्धप्रज्ञ जी ने वैराग्य भावना कैसे बनी और दृढ़ संकल्प के परिणाम बताएं। कार्यक्रम का संयोजन मुनि श्री धैर्य कुमार जी ने किया। मीडिया संयोजक सूरज जैन का भी सहयोग रहा।