द्वारा - पूनमचंद भंडारी (एडवोकेट)
न्यायालयों में लंबित मुकदमों की बढ़ती संख्या चिंता का विषय है, जब सारे न्यायालय काम कर रहे थे तब भी मुकदमों का अंबार लग रहा था और अब जब 7 महीने से न्यायालयों में काम बंद है तो क्या हाल होगा? विडियो कोन्फ्रेंसिंग से सुनवाई सिर्फ चंद वकील ही कर पा रहे हैं, हरेक के पास यह सुविधा भी नहीं है और राजस्थान में कई कोर्टों में तो बिजली तक नहीं है. इन्टरनेट सुविधा नहीं है. न्यायिक अधिकारीगण भी कम्प्यूटर तकनीक से पूरी तरह प्रशिक्षित नहीं हैं।
राजस्थान में करीब 90,000 हजार वकील है, उनमें से युवा वकीलों की परेशानी कोई नहीं समझ रहा है. उसको मकान का किराया भी चुकाना है. घर चलाना है और बच्चों की स्कूल फीस भी देनी है, वो किस मानसिक स्थिति से गुजर रहा है इसका किसी को अहसास नहीं है. मुवक्किल भी अपनी तकलीफ वकीलों को ही बताता है न्यायालयों को मुवक्किलों के दुःख दर्द की परवाह नहीं है।
वकील कोर्ट नहीं जा रहे हैं तो स्टाफ और मुंशियो की आफ़त हो गई है. थड़ी-ठेले वाले टाइपिस्ट जैसे कई लोग बेरोजगार हो रहे हैं। इनकी रोजी रोटी की चिंता किसे है। पूरे राजस्थान में वकील प्रत्यक्ष उपस्थित होकर काम करना चाहते हैं। जिन न्यायिक अधिकारियों को अपनी जिंदगी की ज्यादा परवाह है वो छुट्टी लेकर न्यायालय नहीं आएं और घर से बाहर भी ना निकलें। जिनको काम करना है वो न्यायालय में आजाएंगे।
जिस तरह की सूचनाएं हैं कोरोना अभी बहुत लंबा चलेगा और इसका बचाव मुंहपत्ती (मास्क) ही है, तो हम पूरी सावधानियां बरत कर काम करेंगे। कोरोना से मृत्यु दर 1% है, इससे ज्यादा तो एक्सीडेंट से मौतें हो जाती हैं. तो क्या गाड़ियां चलाना बंद कर दें और अंत में होई वही राम रतन राखा।