धार्मिक कट्टरता देश के लिए घातक - अजीत सिन्हा

     हमारा राष्ट्र भारत विविधताओं से परिपूर्ण है क्योंकि इसमें कई प्रांत वैसे शामिल हैं जिनकी अपनी भाषा, बोल- चाल, खान - पान, रहन - सहन अलग - अलग है लेकिन हृदय हिन्दुस्तानी है. विविधता में एकता इसकी खूबसूरती है लेकिन इस खूबसूरती को बाहर से आने वाले मुगलों और अंग्रेजों ने नजर लगा दी है. वे दोनों अपने - अपने धर्म के प्रति कट्टर हैं क्योंकि उनके लिये उनकी धर्म या कौम सबसे पहले आती है, देश बाद में कुछ अपवादों को छोड़कर जिससे देश का ताना - बाना बिगड़ता हुआ  चला  जा रहा  है.  देश में धार्मिक कट्टरता अपनी पैर पसार रही है और कट्टरपंथी धर्म के नाम पर अपनी रोटी सेंक रहे हैं. 

     एक कौम राष्ट्र के इस्लामीकरण हेतु प्रयासरत है तो दूसरी ओर दूसरी कौम गरीबों को उनकी मदद के नाम पर बड़े पैमाने पर ईसाईकरण हेतु प्रयत्नशील हैं. तीसरी ओर एक देश भक्त कौम किसान आंदोलन की आड़ में खालिस्तानी समर्थकों को प्रश्रय दे रहे हैं. चौथी ओर बहुसंख्यक समाज हिन्दू तमाशा देख रहा है. यह सब एक बहुसंख्यक बहुल नेतृत्वकर्ता भाजपा के शासनकाल में हो रहा है. जिससे हिन्दुत्व कट्टरता भी बढ़ती जा रही है. यह सब देखने पर प्रतीत होता है कि देश या तो धर्म युद्ध की तरफ बढ़ रहा है या बढ़ने को मजबूर क्योंकि आततायियों पर चाह कर भी सत्तासीन सरकार लगाम नहीं लगा पा रही है, अपितु बहुसंख्यक समाज को अभी भी अपने प्रधानमंत्री जी पर भरोसा है कि वे सब कुछ ठीक कर देंगे लेकिन इसका जवाब तो आने वाला समय ही दे पायेगा।

     विविधता में एकता जो हमारी शक्ति थी वह कमजोर हो गयी है या आज हम सभी को कमजोर रूप में दिखाई दे रही है, वो भी राष्ट्र के लोगों की स्वयं की आँख खुलने से क्योंकि इसकी बुनियाद गाँधी जी द्वारा ही रखी गई है.  कतिपय आजादी हम सभी को जिस स्वरुप में प्राप्त हुई है उस स्वरुप के परिणाम स्वरुप हम सभी भारत वासियों को परिणाम भुगतने ही होंगे, क्योंकि धार्मिक आधार पर विभाजन सर्वथा गलत था। यदि इस आधार पर हुआ भी था तो भारत को उसी समय हिन्दू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए था.  इस्लाम के पोषक सभी लोगों को पाकिस्तान भेज देना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ और गाँधी जी अंग्रेजों के कुत्सित नीति के शिकार हो गये. उन्होंने देश में बबूल के पेड़ बो दिये तो राष्ट्र वासियों को आम कहां से खाने को मिलेगे।  तीर कमान से निकल चुका  है और हम सभी को हाथ मलने के सिवा क्या बचा है? लेकिन मेरी समझ से इसे अभी भी ठीक किया जा सकता है और उसके लिये पूरे देश की demography को बदलने की आवश्यकता है अर्थात् अल्पसंख्यकों को पूरे देश में फैलाने की आवश्यकता है ताकि वे एक जगह  एकत्रित न होकर बहुसंख्यक हिन्दू समाज के बीच टुकड़ों में रहें। 

     पूरे देश में जनसंख्या नियंत्रण कानून के तहत सभी समुदायों की जनसंख्या को नियंत्रित करना होगा तभी धार्मिक कट्टरता और धर्मांधता पर अंकुश लगेगा। क्योंकि अल्पसंख्यक समुदाय को यहां के बहुसंख्यक समुदाय से खतरा नहीं है क्योंकि हिन्दू, जैन, बौद्ध धर्म के अनुयायियों में दया, सहनशीलता और करुणा होती है और वे सभी से प्रेम करते हैं या प्रेम करना जानते हैं, न कि देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित कर. क्योंकि हिन्दू राष्ट्र घोषित करने से सभी धर्मों के लोग खास कर मुस्लिम पुनः एक अलग राष्ट्र की माँग करने लगेंगे।जो कि देश अब एक और विभाजन नहीं सह सकता है और मेरी समझ से यहां के बहुसंख्यक समुदाय हिन्दू को स्वीकार भी नहीं होगा. इसलिये पूरे देश में demography change हेतु परिसिमन लाने की आवश्यकता है और इस पर भारत के प्रधानमंत्री समेत सभी राष्ट्र भक्तों को मनन करने की आवश्यकता है. जय हिंद