आपदा में धैर्य के साथ सकारात्मक भूमिका निभाने वाले सच्चे राष्ट्र भक्त - अजीत सिन्हा

     बोकारो (झारखण्ड) : महामारी के दौर में धैर्य के साथ सकारात्मक कार्य कर राष्ट्र के लोगों की सेवा करने वाले सही मायनों में राष्ट्र भक्त हैं और ऐसे राष्ट्र भक्तों पर देश के लोगों को नाज़ होनी चाहिये जो अपने जान को जोखिम में डालकर लोगों की सेवा करने से बाज नहीं आ रहे हैं और ऐसे राष्ट्र भक्तों को प्रस्तावित नेताजी सुभाष पार्टी हृदय से नमन करती है और सेवा कार्य के दौरान यदि उनकी मृत्यु हो जाती है उन्हें अवश्य ही बलिदानी या शहीद का दर्जा देने से भारत सरकार के साथ - साथ राज्य के सरकारों को गुरेज नहीं करनी चाहिए। इस आशय की अभिव्यक्ति अजीत सिन्हा ने प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से राष्ट्र प्रहरी पत्रकारों के समक्ष प्रकट की।

(अजीत सिन्हा)
       आगे उन्होंने कहा कि आज पूरे देश में महामारी की वज़ह से अफरातफरी और भय का माहौल है लेकिन इस समय भी राष्ट्र भक्त संस्थाओं के लोग, लोगों के मदद करने से नहीं चूक रहें हैं और कई लोग तो व्यक्तिगत तौर पर भी अपने मदद करने के ज़ज्बे को कायम किये हुये हैं जो कि वास्तव में काबिल - ए - तारीफ है। इस विषम समय में राष्ट्र के कई विभूतियों का जाना वास्तव में राष्ट्रीय क्षति से कम नहीं जिसकी भरपाई बहुत ही मुश्किल है क्योंकि दिवंगत लोग अपने जाने के साथ - साथ अपनी क्षमताओं को भी लेकर चले जाते हैं और केवल उनकी स्मृति ही शेष रहती है और एक क्षमतावान विभूति बनने या बनाने में कई सालों की मेहनत लगती है और इस समय कई माओं ने अपने लाडले तो कई बहनों ने अपने भाइयों को खोया है और कई भाइयों ने अपनी बहनों को जिनके अंदर अवश्य ही कुछ न कुछ क्षमता रही होगी जिससे देश एवं देश के लोगों को क्षति उठानी पड़ रही है लेकिन यहां यह प्रश्न है कि आखिर इसका जिम्मेवार कौन? क्या वे माफिया वर्ग जो इंसानों की लाशों से धन कमाते हैं या वे जो लोगों को बीमार कर अपनी झोलीयां भरते हैं? या वैसे लोगों की चाल जो अपने देश भारत को सुखी देखना नहीं चाहते हैं? या ईश्वर का प्रकोप? या इंसानो की गलतियों का खामियाजा? ये मनन और सम्भवतः जाँच का विषय हो सकती है।

     अंत में अजीत सिन्हा ने कहा कि बहरहाल कारण कुछ भी हो या सभी लेकिन इसका खामियाजा तो इंसानों को ही भोगनी पड रही है और इसे व्यवस्था (सिस्टम) की कमी कहें या संसाधनों की कमी या नेतृत्व की अक्षमता लेकिन काल - कल्वित कौन हो रहे हैं जनता - जनार्दन ही ना। और जनता की आँखों में आंसू किसी भी व्यवस्था को धराशाई या चौपट करने के लिए काफी है इसलिये नेतृत्व को चेतना होगा और वर्तमान परिस्तिथियों से सीख भी लेनी होगी क्योंकि प्रजातंत्र में शक्ति की बागडोर जनता के हाथों में ही होती है जो राजा को रंक बनाना भी जानती है।

     देश में ऐसी स्थिति व परिस्तिथी आ गई है कि कोई भी नहीं कह सकता है कि किसका नंबर पहले आ जाएगा और हमें छोडकर चला जाएगा और कोई मुझे बतायेगा कि इसमें गलती किसकी है? क्या आम जनता की या देश - प्रदेश स्तर पर शासन करने वाले नेतृत्व की। मेरी समझ से आम जनता की तो हो ही नहीं सकती क्योंकि जनता भरोसे पर सत्ता शासक वर्ग को सौंपती है और जब भरोसा टूटता है तो आँखों में आंसू और पछताने एवं खोने के सिवा कुछ भी हासिल नहीं होता है। 

     इस विकट स्थिति एवं परिस्थितियों में जनता - जनार्दन से मुझे इतना ही कहना है कि वे धैर्यता के साथ अपनी परिस्तिथियों का मुकाबला स्वयं करें जो कि आप कर भी रहे हैं और अपनी गलतियों से सीख लेकर परमात्मा पर भरोसा रखें ताकि बिगड़ी परिस्तिथियां दिन - प्रतिदिन ठीक हो।

सभी दिवंगत आत्माओं को भावभीनी श्रद्धांजलि, ॐ शांति 🙏