ब्रह्मचारी व निराहारी का दर्शन

 प्रसंग from - PARAG SAXENA 

      एक बार गोपियों ने श्री कृष्ण से कहा -  “ हे कृष्ण हमें अगस्त्य ऋषि को भोग लगाने जाना है और ये यमुना जी बीच में पड़ती हैं अब बताओ कैसे जावें ? “

    भगवान् श्री कृष्ण ने कहा कि जब तुम यमुना जी के पास जाओ तो कहना कि - हे यमुना जी ! अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी हैं तो हमें रास्ता दें । 

   गोपियाँ हँसने लगीं  कि लो ये कृष्ण भी अपने आप को ब्रह्मचारी समझते हैं , सारा दिन तो हमारे पीछे-पीछे घूमता है, कभी हमारे वस्त्र चुराता है , कभी मटकियाँ फोड़ता है , कभी हमारे घर में घुसकर माखन चुराता है , कोई बात नहीं ,  फिर भी हम बोल देंगी ।

    गोपियाँ यमुना जी के पास जाकर कहती हैं कि -  हे यमुना महारानीजी !  अगर श्री कृष्ण ब्रह्मचारी हैं तो हमें रास्ता दे दो और गोपियों के कहते ही यमुना जी ने रास्ता दे दिया ।                                                                         गोपियाँ तो आश्चर्यचकित रह गईं कि  यह क्या हुआ..... कृष्ण ब्रह्मचारी ? 

   अब गोपियाँ अगस्त्य ऋषि को भोजन करवा कर वापिस आने लगीं तो अगस्त्य ऋषि से कहा कि महात्माजी ! अब हम घर कैसे जायें ,  यमुना जी बीच में हैं ? 

   अगस्त्य ऋषि ने कहा कि तुम यमुना जी को कहना कि अगर अगस्त्य जी निराहार हैं  तो हमें रास्ता दे दो । 

   गोपियाँ मन में सोचने लगीं कि अभी-अभी तो हम इतना सारा भोजन लाईं थीं ,  सो सबका सब खा गये और अब अपने आप को निराहार बता रहे हैं ,इन महात्माजी की भी  क्या विचित्र बात है ? 

  गोपियाँ यमुना जी के पास जाकर बोलीं कि - हे यमुना जी ! अगर अगस्त्य ऋषि निराहार हैं तो हमें  रास्ता दे दो और यमुना जी ने रास्ता दे दिया ।

   गोपियाँ आश्चर्य करने लगीं  कि  जो खाता है वो निराहार कैसे हो सकता है और जो दिन रात हमारे पीछे- पीछे घूमता-फिरता है वो ब्रह्मचारी कैसे हो सकता है ? इसी विचार-चिंतन में गोपियों ने  श्री कृष्ण के पास आकर फिर से वही  प्रश्न किया कि आप ब्रह्मचारी कैसे हैं ? 

      भगवान् श्री कृष्ण कहने लगे गोपियों मुझे तुमारी देह से कोई लेना देना नही है, मैं तो तुम्हारे प्रेम के भाव को देख कर तुम्हारे पीछे आता हूँ , मैंने कभी वासना के तहत संसार नहीं भोगा है । मैं तो निर्मोही हूँ , इसलिए यमुना ने आप को मार्ग दे दिया । 

  तब गोपियाँ बोलीं कि  भगवन् ! मुनिराज ने तो हमारे सामने भोजन ग्रहण किया फिर भी वह  बोले कि अगत्स्य आजन्म उपवासी हों तो हे यमुना मैया ! मार्ग दे दें और बड़े आश्चर्य की बात है कि यमुनाजी ने हमको मार्ग दे दिया। 

  श्री कृष्ण हँसने लगे और बोले कि अगत्स्य आजन्म उपवासी ही हैं , क्योंकि अगत्स्य मुनि भोजन  ग्रहण करने से पहले मुझे भोग लगाते हैं और उनका भोजन में कोई मोह नहीं नहीं होता , उनके मन में कभी भी यह विचार नहीं होता कि मैं भोजन करुँ या भोजन कर रहा हूँ । वह तो अपने अंदर विराजमान मुझे भोजन करा रहे होते हैं इसलिए वो आजन्म उपवासी हें । जो मुझसे प्रेम करता है मैं  उनका सच में ऋणी हूँ ,  मैं  तुम सबका ऋणी हूँ , यह सुनकर और परम सत्य को जानकर गोपियाँ श्रीकृष्ण के चरणों में नतमस्तक हो गयीं ।- 

बोलो भक्तवत्सल भगवान् श्रीकृष्ण की जय.