Poem from - Narendra Singh "Babal"
(नरेन्द्र सिंह बबल) |
सांझ हो आयेगी
फिर धीरे-धीरे
रात छा जाएगी ,
इन लम्हों से डरना नहीं
मन से तुम थकना नहीं
संग तुम्हारे -साथ निभाने ,
फिर आ जाऊँगा सूरज बनकर ,
हाथों में मुस्काती सहर लिए |
टूट रहे होंगे शाखों से
पतझड़ के पत्तों जैसे ,
कलियां खिल कर मुरझायेंगी
वक़्त के हाथों पिसकर जैसे ,
चारों तरफ पथराई धरती
सूनी होंगी नीरस आँखें ,
इन लम्हों से मिटना नहीं
मन से तुम सिमटना नहीं ,
संग तुम्हारे-साथ निभाने
फिर आ जाऊँगा सावन बनकर,
हाथों में बबल सोलह श्रृंगार लिए||
संग तुम्हारे -साथ निभाने ||
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