न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी का कानून केंद्र एवं राज्य बना कर किसानो की आत्महत्याओं के कलंक को धोये

News from -  बत्तीलाल बैरवा (प्रदेश मंत्री, किसान महापंचायत)

     दिल्ली. किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट ने कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर से मिलकर किसानों की समस्याओं के समाधान के संबंध में चर्चा कर ज्ञापन सौंपे । जिनमें न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की गारंटी का कानून बनाने सहित, राज्य स्तर पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की खरीद की गारंटी के कानून बनाने के लिए कृषि उपज मंडी अधिनियमों में बाध्यकारी प्रावधान करने, प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान के अंतर्गत तिलहन एवं दलहन की उपजो की खरीद में 25% जैसे प्रतिबंधो को दूर करने तथा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को संवैधानिकता प्रदान करने के संबंध में उल्लेख किया है । 

     ज्ञापन में अंकित किया गया है कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग को संवैधानिकता प्रदान करने के लिए 1964 में गठित एल के झा समिति ने अनुशंसा की थी और उसके उपरांत अभिजित सेन की अध्यक्षता वाले दीर्घकालीन खाद्य नीति समिति 2002, 2004 में डॉक्टर एम एस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय किसान आयोग, 2013 में वर्तमान में नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद की अध्यक्षता में गठित वैज्ञानिक पद्धति से लागत की गणना के संबंध में गठित समिति जैसे अनेकों आयोगों एवं समितियों ने भी इस संबंध में अनुशंसा की है, इसके अतिरिक्त वर्तमान में केंद्र में सत्तारूढ़ दल के अनेक चुनावी घोषणा पत्रों में इस संबंध में चर्चा की गई है । 

     वर्तमान में देश में खाने के तेल एवं दलहन के आयात पर भारी-भरकम राशि खर्च की जाती है । इनके लिए विदेशों पर निर्भर रहना पड़ता है एक ही वर्ष का आयात पर खर्च 1 लाख 28000 करोड़ रुपये है । इसके उपरांत भी इनकी उपजों की खरीद के लिए 2014 में मूल्य समर्थन योजना के अंतर्गत मार्गदर्शिका तैयार की थी, जिसमें उत्पादन में से 25% से अधिक खरीद को प्रतिबंधित कर दिया और उसी में एक दिन में एक किसान से खरीद की मात्रा 25 क्विंटल की सीमा निर्धारित कर दी गयी । दलहन एवं तिलहन के किसानों के लिए कुल उत्पादन में 75% का न्यूनतम समर्थन मूल्य समाप्त हो गया । 

     जहां देश को आत्म निर्भरता की ओर ले जाने के लिए किसानों को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता थी, वही उनकी उपजों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम दामों में बेचने के लिए किसानों को विवश कर दिया, इससे किसान हतोत्साहित हो रहे हैं । इसी क्रम में 2018 में प्रधान मंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान, जिसे अम्ब्रेला योजना के रूप में प्रचारित किया गया । किसानों की आय पर कुल्हाड़ी चलाकर उसे संरक्षण का नाम दे दिया गया और 25% से अधिक खरीद करने की छूट के लिए अकेले कृषि मंत्रालय से यह अधिकार छीनकर वित्त एवं खाद्य मंत्रालय सहित तीन मंत्रियों की समिति को ही छूट देने का अधिकार सौंप दिया गया ।

     देश में बिहार, मणिपुर एवं केरल को छोड़कर सभी राज्यों के कृषि उपज मंडी अधिनियम है । बिहार में इसे वर्ष 2006 में समाप्त कर दिया था । कृषि उपज मंडी कानूनों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में उपजों के बेचान रोकने के लिए अनेक राज्यों में प्रावधान किये हुए हैं । जिनमें से कुछ राज्यों के प्रावधान बाध्यकारी हैं, कुछ राज्यों में ऐच्छिक प्रावधान है और कुछ राज्यों ने इस सम्बन्ध में कोई प्रावधान नहीं रखे । वर्ष 2000 से कृषि सुधारों के क्रम में वर्ष 2017 में केंद्र द्वारा आदर्श कृषि उपज एवं पशुधन विपणन (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम का प्रारूप तैयार कर सभी राज्यों को 2018 में प्रेषित कर दिया गया । 

      इसके उपरांत बजट 2020-21 में केंद्र सरकार ने इसे और राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए बजट में प्रावधान कर संकेत भी दिया किंतु इन प्रावधानों की स्थिति जस की तस रही । जिन राज्यों में बाध्यकारी प्रावधान किए गए उनकी पालना के लिए सम्यक नियम नहीं बनाये गए । जिससे उत्तराखंड, झारखंड जैसे राज्यों में भी किसानों को अपनी उपजों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में बेचने को विवश होना पड़ रहा है । जबकि कृषि उपज मंडी अधिनियम के अंतर्गत बने हुए नियमों में न्यूनतम समर्थन मूल्य से मंडियों में नीलामी बोली आरंभ करने का प्रावधान करने से किसी भी किसान को अपनी उपज घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम में बेचने को विवश नहीं होना पड़ेगा । 

     आदर्श प्रारूप के आधार पर सभी राज्य कानून तैयार करें इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा सभी राज्यों के प्रतिनिधियों की संयुक्त बैठक बुलाकर निरंतर केंद्र की ओर से प्रयास किए जाने अपरिहार्य है और उन राज्यों को यह भी केंद्र द्वारा आश्वासन देने की आवश्यकता है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की राशि की भरपाई केंद्र सरकार करेगी । इस प्रकार की घोषणाओं से राज्य कानून बनाने को तैयार हो जाएंगे । वैसे भी संविधान में कृषि एवं किसान कल्याण से संबंधित कानून बनाने का अधिकार राज्यों को ही है इस प्रकार के प्रावधानों से किसान ऋणदाता बना सकेंगे । जिससे देश के माथे पर किसानों की आत्महत्याओं का कलंक धुल जाएगा और देश दुनिया में महाशक्ति बन कर उभरेगा ।

     उस समय केंद्र के कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री कैलाश चौधरी तथा कानपुर देहात के लोकसभा सदस्य देवेंद्र सिंह भोले तथा मुकेश बंसल आई.ए.एस. भी उसमें उपस्थित थे । कृषि मंत्री ने ज्ञापन के संबंध में समीक्षा के उपरांत सार्थक कार्रवाई का आश्वासन दिया ।