News from - Gopal Saini
जयपुर. भारत सरकार ने खरीफ फसलों में मूंग, उड़द, अरहर तथा राम तिल, तिल, मूंगफली सहित दलहन-तिलहन के न्यूनतम समर्थन मूल्यों में बढ़ोतरी की है, यद्यपि यह (सी-2) लागत का डेढ़ गुना नहीं है तो भी सही दिशा में उठाया गया कदम है। इसी प्रकार मोटे अनाजों में मक्का, ज्वार एवं बाजरा के न्यूनतम समर्थन मूल्य में भी बढ़ोतरी की गई है किन्तु उसमें सबसे बड़ी बाधा भारत सरकार द्वारा मोटे अनाजों में बनायी गयी खरीद की नीति है ।
इसी प्रकार प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना में भारत सरकार द्वारा बनाई गई नीति से तिलहन एवम दलहन के कुल उत्पादन में से 75% उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य की परिधि से बाहर कर दी गई है, उसमें भी एक दिन में एक किसान से अधिकतम 25 क्विंटल तथा खरीद अवधि 90 दिन अधिकतम रखने जैसे प्रतिबंधों के कारण किसानों को उनकी उपजों के सरकार द्वारा घोषित दाम भी नहीं मिल पाते हैं ।गेंहू एवम धानों की खरीद के संबंध में भी राज्यों के मध्य भारी भेद-भाव है, जहां धान की खरीद में सबसे बड़ा उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल है उसमें धान की खरीद तथा सबसे बड़ा गेंहू उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में गेंहू की खरीद दयनीय है। जहाँ कुछ राज्यों में खरीद कुल उत्पादन की 90 प्रतिशत तक है वहीं सबसे बड़े उत्पादक राज्य सहित अन्य राज्यों की खरीद कुल उत्पादन में से 25 प्रतिशत भी नही है। नीति के क्रियान्वयन में इसप्रकार के विरोधाभास के कारण फसल विविधीकरण बिगड़ रहा है।
इन नीतियों को सही करने एवं प्रतिबंधों को हटाने के लिए प्रधानमंत्री तक भारत सरकार को पिछले 3 वर्षो से तो ज्ञापनों द्वारा निरंतर अनुनय-विनय किया जा रहा है। इसी के साथ धान एवं गेहूं की दाने-दाने की खरीद की जैसी नीति दलहन-तिलहन एवम मोटे अनाजों के संबंध में बना कर देश को आत्मनिर्भर बनाने हेतु आगाह किया जा रहा है।
आज भारत सरकार से देश के किसानों को इन नीतियों में परिवर्तन की आशा थी किन्तु खरीद नीति के संबंध में भारत सरकार की चुप्पी से देश के किसान निराश हुए है।