तिलहन एवं दलहन की खरीद पर रामपाल जाट की प्रतिक्रिया

News from - गोपाल सैनी 

तिलहन एवं दलहन की खरीद पर 25% से बढ़ाकर 40% करने के कदम पर किसान महापंचायत के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामपाल जाट की प्रतिक्रिया रह गए कहतन खाटी - मीठी

     जयपुर। तिलहन एवं दलहन की खरीद पर 25% से बढ़ाकर 40% करने का कदम सही दिशा में उठाया हुआ किंतु अत्यल्प है । जो ठिठक एवं हिचक को दर्शाता है । यह वृति ही जनकल्याणकारी कामों को रोकने में छोटी मानसिकता की भूमिका निभाती है । वर्ष 2018 में किसानों को उनकी उपजों का लाभकारी मूल्य दिलाने के नाम पर “प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संरक्षण अभियान” (पीएम-आशा) आरंभ की गई । जिसमे दलहन-तिलहन एवं कोपरा के लिए कुल उत्पादन में से 25% से अधिक खरीद नहीं करने संबंधी प्रतिबंध का प्रावधान किया गया है । जिससे तिलहन एवं दलहन की कुल उत्पादन में से 75% उपजों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की परिधि से बाहर कर दिया गया । 

     25% खरीद में भी अधिकतम 90 दिन तक ही खरीद करने जैसे प्रावधानों के द्वारा कटौती की गई । इसके साथ ही राज्यों के मध्य खरीद में भेदभाव एवं पक्षपात की नीति अपनाई गई । कल, आर्थिक मामलों से संबंधित मंत्रिमंडल उपसमिति की प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में हुई बैठक में दलहन की 5 उपजों में से तूर (अरहर), उड़द और मसूर खरीद के लिए 25% को बढ़ाकर 40% कर दिया गया । इन उपजों के उत्पादन में क्रमश: महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश जैसे देश में सर्वाधिक उत्पादन करने वाले राज्य है । किन्तु चना, मूंग जैसी दलहन तथा 7 प्रकार तिलहन उपजों को इस संशोधन से बाहर रखा गया । जबकि मूंग की उपज तो तैयार होकर सितम्बर माह में बाजार में आ जायेगी । मूंग का न्यूनतम समर्थन मूल्य 7755 रुपये है जबकि बाजार भाव 6000 रुपये प्रति क्विंटल से कम है । तब भी इस उपज को इसमें सम्मिलित क्यों नहीं किया गया इसका कोई कारण नहीं है । किसानों को घाटे की सम्भावना अवश्य बनी हुई है ।

     न्यूनतम समर्थन मूल्य की परिधि में 22 उपजें है, जिनकी खरीद नीति भी भेदभाव पूर्ण है । गेंहू एवं धान की खरीद में मात्रात्मक कोई प्रतिबन्ध नहीं है इसी लिए अभी तक गेंहू की खरीद पंजाब, हरियाणा एवं मध्यप्रदेश राज्यों में कुल उत्पादन में से 85 प्रतिशत तक हुई है । धान की खरीद इस वर्ष पंजाब में तो 97.46 प्रतिशत हो गयी । इस पक्षपात पूर्ण नीति के कारण फसलों का विविधिकरण बिगड़ा हुआ है । यह स्थिति तो तब है जब भारत सरकार फसलों के विविधीकरण के लिए निरंतर उपदेश देती रहती है । 

     न्यूनतम समर्थन मूल्य में खरीदे गए चनो के निस्तारण के लिए केन्द्रशासित सहित सभी राज्यों को वितरण में छूट देकर प्रोत्साहन की चर्चा मगरमच्छ के आंसू जैसी है । 

      मूंग का उत्पादन उत्पादन अकेले राजस्थान का देश में सर्वाधिक 48% तक है । इस भेदभाव को समाप्त कर मूंग को इस परिधि में सम्मिलित करने सहित तिलहन एवं दलहन की सभी 12 उपजों की खरीद में सभी प्रतिबंधो को समाप्त करने का कदम उठाया जावें । जिससे प्रतिवर्ष खाने के तेल एवं दालों के आयात पर होने वाले खर्च को रोका जा सकें । अभी तक एक वर्ष में 128 करोड़ रुपये का आयात खर्च आया हुआ है । 

     किसानो को लड़ाई के लिए सडकों पर आने से पहले ही भारत सरकार को सार्थक कार्यवाही करनी चाहिए जिससे किसान कमाई करता हुआ राष्ट्र निर्माण में सहयोग देता रहे ।