वक़्त का तकाज़ा था, बदलने लगा हूँ अब

स्व-रचित रचना - डॉ.अनिल झा  (Astrologer)

 वक़्त का तकाज़ा था, बदलने लगा हूँ अब ! 

शब्दों को माप तौल कर कहने लगा हूँ अब !


(डॉ.अनिल झा )







अपेक्षा नहीं रखता किसी रिश्ते में ,

सुकून की नींद मुझको, आने लगी है अब !

जबसे बहते हुए आंसुओं के निशान पोंछे है,

आईने को भी पसंद आने लगा हूँ अब !

भावनाओं में बहकर अब खुद को परेशां नहीं करता,

सीने में पत्थर सा कुछ रखने लगा हूँ अब !

कोई मेरा है तो उसे परवाह मेरी भी होगी ,

मैं भी कुछ लोगों को आज़माने लगा हूँ अब !

खुद से कई सवाल करने लगा हूँ अब !

दिल से आज भी सबका ख्याल रखता हूँ, 

पर उनकी बेपरवाही कम असर करती है अब !

टूट कर अबतक सबका मान रखा है , 

"ना "बोलने का फन सीखने लगा हूँ अब !

सब पर छोड़ दिया है उनके फैसले का हक़ ,

अपने पक्ष साबित करने कोशिश छोड़ दी है अब !

लोगों की उठती उंगलियाँ असर नहीं करती ,

मन को दर्पण बनाकर अपने कर्मों का हिसाब रखने लगा हूँ अब !

अपने लिए कुछ वक़्त चुरा ही लेता हूँ , 

कुछ गानों को गुनगुनाने लगा हूँ अब |

चादर पर काढ़े गए कुछ फूलों के साथ - साथ मुस्कुराने लगीा हूँ अब !

जीता हूँ इस तरह कि आज आखिरी दिन हो,

ज़िंदगी एक ही बार मिलती है सबको ,खुद को समझाने लगा हूँ अब !

नहीं ऐसा नहीं कि किसीकी परवाह नहीं मुझे ,

पर इसे जताने से कतराने लगा हूँ अब !

ख़ामोशी से काम किये जाता हूँ ,

साथ साथ गुनगुनाये जाता हूँ |

कुछ दिल के करीब है मेरे, कुछ मेरा ख्याल रखतें है ,

कम से कम नकली चेहरे पहचानने लगा हूँ अब !

उनके हाथो में मेरी ज़िंदगी की कमान क्यूँकर हो ,

जिन्हे परवाह नहीं मेरी,खुद को यही समझाने लगा हूँ अब !

वक़्त का तकाज़ा था ,बदलने लगा हूँ अब ! 

शब्दों को माप तौल कर कहने लगा हूँ अब..!!